May 12, 2024

साहित्य और फ़िल्में दोनों एक दूसरे को लाभ पहुँचा सकते हैं : दिनेश शाकुल सक्सेना

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रिपोर्ट: रणविजय राव

"21वीं सदी के साहित्यकार" समूह के पटल पर ऑनलाइन "आत्मीय वार्तालाप" कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस 'आत्मीय वार्तालाप' कार्यक्रम के केंद्र में थे कवि, अभिनेता, फिल्मकार और भाषा-समन्वयक दिनेश शाकुल सक्सेना जी। इनसे बातचीत की प्रतिष्ठित साहित्यकार परवेश जैन ने।
इस ऑनलाइन कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार और भाषा विशेषज्ञ डॉ राजेश कुमार जी ने की और इसके मुख्य संयोजक थे वरिष्ठ कवि और व्यंग्यकार डॉ लालित्य ललित।
करीब 2 घंटे तक चले इस ऑनलाइन कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत किया दुबई निवासी वरिष्ठ कवयित्री स्नेहा देव ने। यह आत्मीय वार्तालाप वास्तव में बेहद आत्मीय रहा जिसमें गंभीर से गंभीर से लेकर हल्के-फुल्के सवाल भी पूछे गए। परवेश जैन के इन सवालों का दिनेश शाकुल सक्सेना जी ने भी उतनी ही बेबाकी से जवाब दिया। इन सवालों में उन्होंने अपनी उम्र और तब की दिल्ली के बारे में जब वे यहां रहते थे चालीस साल पहले, उससे जुड़े सवालों का भी बड़े ही विस्तार से और रोचक जवाब दिया।
दिल्ली-6 के सीताराम बाजार जहां उनका बचपन गुजरा, बल्लीमारान की गलियां जहां गालिब की हवेली है, ख़ान-पान, पतंगबाजी, पढ़ाई के दौरान श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स में बिताए पलों, साहित्यिक गलियारों की चहलकदमी आदि के बारे में उन्होंने अपनी यादें कार्यक्रम से जुड़े श्रोताओं से साझा की। कॉमर्स का विद्यार्थी होते हुए भी वह कैसे हिंदी भाषा से जुड़े और किस तरह कविता-कहानी से होते हुए हिंदी नाटक और हिंदी सिनेमा से जुड़ते चले गए, इस बारे में भी उन्होंने रोचक जानकारी साझा की।
हिंदी लेखन और हिंदी लेखकों के बारे में, हिंदी किताबों की बिक्री के बारे में उन्होंने कहा कि हिंदी के लेखक थोड़े संकोची स्वभाव के होते हैं। अपनी लेखनी और अपने किताबों का प्रचार नहीं करते। इसलिए उनकी पुस्तकें अच्छी और पठनीय होते हुए भी पाठकों तक नहीं पहुंचती हैं। दिनेश शाकुल जी ने सवालिया लहजे में कहा कि जब दस रुपये के साबुन की टिकिया के न जाने कितने प्रचार होते हैं, और एक लेखक जो अपने जीवन का पूरा निचोड़ अपनी लेखनी में उड़ेल देता है, उसे अपनी किताबों की बिक्री के लिए क्यों नहीं प्रचार करना चाहिए। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि आज भी बहुत बड़े पाठक वर्ग तक किताबें नहीं पहुंचती हैं और इन्हें समुचित प्रचार के माध्यम से ही पहुंचाया जा सकता है।
उन्होंने नाटक, धारावाहिक, सिनेमा आदि के अपने अनुभव यात्रा के रोचक किस्से भी साझा किए। 'चाणक्य', 'चंद्रगुप्त मौर्य' जैसे धारावाहिकों में काम, अपनी पहली फिल्म - 'पहला अध्याय', वायस ओवर, यूट्यूब चैनल 'धरोहर, हिंदी भाषा से जुड़े अपने संघर्षों के बारे में भी उन्होंने कई रोचक जानकारी दी।
इस कार्यक्रम में प्रभात गोस्वामी, अलका अग्रवाल सिगतिया, डॉ विवेक रंजन श्रीवास्तव, स्नेहा देव और डॉ हरीश नवल जैसे वरिष्ठ साहित्यकारों ने अपने-अपने सवाल पूछे और विशेष टिप्पणी भी की जिसका दिनेश शाकुल सक्सेना जी ने अपने उत्तर से उन्हें संतुष्ट किया। 
कार्यक्रम के मुख्य संयोजक वरिष्ठ कवि और व्यंग्यकार डॉ लालित्य ललित ने कहा कि हम सबको बड़ी खुशी हुई कि आज के इस वार्तालाप कार्यक्रम में दिनेश शाकुल सक्सेना जैसी शख्सियत से हम सब रूबरू हुए। लेखन, संपादन, कविता, कहानी, नाटक, अभिनय, सिनेमा, प्रकाशन, किताबों के बारे में दिनेश जी ने हम सबसे रोचक जानकारी साझा की। उन्होंने दिनेश जी के किताबों के प्रचार वाली बात की सराहना की।
युवा साहित्यकार रणविजय राव ने "21वीं सदी के साहित्यकार" समूह की गतिविधियों की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि इस समूह में देश के जानेमाने साहित्यकार जुड़े हैं और अपनी लेखनी और समूह में अलग अलग दिन निर्धारित चर्चा से युवा लेखकों की एक नई और सशक्त पीढ़ी तैयार हो रही है। उन्होंने "आत्मीय वार्तालाप" श्रृंखला की पहली कड़ी में जुड़ने के लिए दिनेश शाकुल सक्सेना जी को धन्यवाद ज्ञापित किया।
अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉक्टर राजेश कुमार जी ने दिनेश ठाकुर जी के अभिनय कौशल और हिंदी भाषा पर उनके अधिकार के बारे में बड़ी ही संक्षिप्त, पर सारगर्भित टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि दिनेश शाकुल जैसे कलाकार हमारे लिए धरोहर हैं और हमारी युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा के स्रोत। उन्होंने कार्यक्रम के कुशल संयोजन और संचालन के लिए समूह के सदस्यों की भी सराहना की।
कार्यक्रम में उपस्थित विशिष्ट अतिथियों और देश के कोने-कोने एवं विदेश से भी ऑनलाइन जुड़े प्रबुद्ध श्रोताओं को धन्यवाद ज्ञापित किया लोकप्रिय व्यंग्यकार और कवयित्री सुनीता शानू ने। उन्होंने चाणक्य और चंद्रगुप्त मौर्य जैसे ऐतिहासिक धारावाहिकों में दिनेश शाकुल सक्सेना जी के बेहतरीन अभिनय कौशल को याद किया और उनके अभिनय की प्रशंसा भी की।
इस कार्यक्रम के सभी तकनीकी पहलुओं का निर्देशन किया लोकप्रिय व्यंग्यकार डॉ सुरेश कुमार मिश्र ने। सुरेश मिश्र जी के कुशल तकनीकी अनुभव के कारण ही कार्यक्रम निर्बाध रूप से चलता रहा।
कार्यक्रम में डॉ संजीव कुमार, डॉ सूर्यकांत (तंजानिया), मेधा झा, तीरथ सिंह खरबंदा, शशांक दुबे, भरत चंदानी, टीकाराम साहू, अरुण आर्णव खरे, आशीष दशोत्तर, दीपक सरीन आदि बड़ी संख्या में प्रबुद्ध और विद्वत श्रोतागण अंत तक जुड़े रहे।

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