October 5, 2024

जाना कहां था
कहां जा रही हूँ

अब तक तो
सबको संभाला है मैंने
मगर मैं अब
खुद ही बिखर रही हूँ

हासिल न कर पायी
मैं कुछ भी
फिर क्या मैं
खोने से डर रही हूँ

कहने को जिंदादिल हूँ
मैं लेकिन
भीतर से
मैं मर रही हूँ

-डाॅ.रेखा खराड़ी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *