September 28, 2024

सबाल्टर्न इतिहास का जादुई यथार्थ

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‘तंगलान’ का अर्थ है, स्वर्णपुत्र। यह कहानी है 1850 की जब अंग्रेजों ने कोलार गोल्ड माइंस में अपनी खोज शुरू की थी। कहानी की शुरुआत में स्थानीय आदिवासी समुदाय के नेता तंगलान (चियान विक्रम) और उसके लोगों की जमीन जमींदार द्वारा छीन ली जाती है। उनके पूर्वजों को नदी से सोना निकालने में महारत हासिल थी, यह गुण जानकर क्लीमेंट नाम का एक अंग्रेज तंगलान और उसके लोगों को लेकर कोलार गोल्ड फील्ड से सोना निकालने के लिए जाता है। इस कठिन सफर में विभिन्न संघर्षों के साथ सोने की रक्षा करने वाली दैवीय शक्ति आर्थी (मालविका मोहनन) से तंगलान को लड़ना पड़ता है। आखिर में उन्हें सोना मिलता है या नहीं, यह देखने आपको फ़िल्म देखनी होगी।

फ़िल्म की स्टोरी, स्क्रीनप्ले, डायरेक्शन, एक्टिंग, सिनेमेटोग्राफी, एक्शन, हॉरर टच, बैकग्राउंड स्कोर और उद्देश्य बेहतरीन है। इस फ़िल्म में शुरू से आखिर तक आदिवासी इतने ओरिजनल, शोषित और प्रतिरोधी जितना लगे हैं, सिनेमा में वैसा पहले नहीं देखा गया है। कलाकारों ने भी इन चरित्रों का रूपरंग और व्यवहार जिस तरह आत्मसात किया है, वह अद्भुत है। ऐसा चरित्र इधर हिंदी सिनेमा के बड़े और नामी कलाकारों द्वारा कभी किया जा सकता है, यह सोचा भी नहीं जा सकता।

फ़िल्म कहानी और फिल्मांकन में वास्तविकता के करीब है जिसकी प्रस्तुति जादुई ढंग से की गई है। फ़िल्म में ढेर सारे प्रतीकों जैसे – बुद्ध, भैंस, गधा, नाग, दैवीय शक्ति आदि का भरपूर प्रयोग है जिसे ऐतिहासिक और राजनैतिक संदर्भ ठीक से पता होगा, वह इन प्रतीकों को समझ सकेगा। यह टिपिकल पा रंजीत स्टाइल फ़िल्म है जिसमें उन्होंने नया रंग भरा है। वे बड़ी फिल्मों के माध्यम से वह दृष्टि लेकर आते हैं जो हिंदी या ज्यादातर सिनेमा में नहीं मिलता। उनकी फिल्में अपने स्वभाव में मूलतः राजनैतिक होती हैं जो मनोरंजन से ज्यादा उन विषयों पर बात करती हैं, जिनपर ज्यादातर फिल्में बात नहीं करतीं।

इन सबके बावजूद फ़िल्म के हिंदी वर्जन में कुछ खामियां भी हैं। फ़िल्म में अनावश्यक शोर बहुत है। कोई भी संवाद धीरे से नहीं कहा गया है। सेकेंड हाफ में दृश्यों का दुहराव और फ्लैश बैक स्टोरी से घटनाक्रम समझने में दिक्क्क्त होती है। सोने की रक्षिका आर्थी का चरित्र जो कि ‘नाग’ है, ‘कांतारा’ की याद दिलाता है जो आतंकित होने की हद तक शोर करती है। गाने में ओरिजिनल तमिल में ‘मिनक्की मिनक्की’ झूमने पर मजबूर करता है जो कि हिंदी में बिल्कुल भी प्रभाव नहीं छोड़ता। और एक बात कि बुद्ध करुणा के प्रतीक हैं पर इस फ़िल्म में उनके प्रभाव को उलटकर रख दिया गया है।

जिन्हें एक्शन, रोमांच रहस्य और कुछ अलग देखने का शौक है, वे इस फ़िल्म को जरूर देख सकते हैं, निराश नहीं होंगे।
पियूष कुमार

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