लोकगीत : गुइयाँ, ससरे में हमाई कदर न भई
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बाँके सैंया अपने गोरे तन पे यूँ इतराते
नंद जिठानी सँग मिलकर हम पर ताने बरसाते
हमरे जियरा की काहू को फिकर न भई
सखि री,अम्मा बाबूजी की यादें खूब सतावैं
बात-बात पर दोई अँखियन में ताल-कुँआ भर आवैं
अफसर भाई की तो कबहूँ खबर न भई
चिहुक ठिठोली संग हमाए ड्योढ़ी तक ही आए
हाट बजरिया बुँदिया तरकी बिसरें ना बिसराए
साँची बोलूँ, बालापन सी उमर न भई
रंजना