September 20, 2024

हरे को और हरा करती ,
नम को और नम करती,
एकांत को और गाढ़ा करती
स्मृतियों की धार को और पैना करती।

बारिश…
बाहर गिरती
भीतर भिगोती ।

बारिश…
मुझमें धँसती
मुझे चीरती,
कांच बूंदों से लहूलुहान कर मुझे समूल नष्ट करती ।

बारिश, यह बारिश …
जो मुझे बार बार जन्मती है ,

क्या आकाश से पानी गिरने की एक घटना मात्र है ?

—–पल्लवी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *