September 20, 2024

☕️नशा ☕️

चाय की प्याली मेरे लिये सिर्फ़ चाय की प्याली नहीं है जीवन का नवीन संदर्भ देने वाली है अदृश्य धागों से बंधी सम्बंधों की विशाल पूँजी है मैंने उसकी यादों को सहेजा समेटा संवारा और अपनी जीवन यात्रा को पहचान देने वाली बनाया ॥

चाय की प्याली के साथ अपनी कहानी को अदृश्य धागों से बुनने का प्रयत्न कर रहा हूँ जहां एक सिरा दूसरे सिरे को बुनता हुआ दिखायी देगा वहाँ पहुँचकर मौन गूंजित होता है लेकिन मौन की भाषा समझने ले लिये लेखक की कलम से बेहतर और क्या हो सकता यादों के चाहे – अनचाहे प्रसंगों को धागों में पिरोना अपने आप में बड़ी चुनौती है अतीत के बिखरे टुकड़ों को समेटना और उनमें अपनी पहचान बनाये रखना और भी दुष्कर है कहानी अनेक धागे बुनती हुई ऐसे मुक़ाम पर पहुँचती है जहां मौन गूंज रहा होता है लेखक की कलम अपने पाठक से बात करती हुई सरगोशी करती है चाय की प्याली सम्बंधों के धागे बुनने में कामयाब होती है जहां वह नशा बनकर छा जाती है ॥

चाय की प्याली होटों तक का सफ़र तय करती हुई यादों के धागे बुनने लगी कहानी स्कूल के किनारे की टपरी से प्रारंभ होकर चाय की प्याली में अपना अस्तित्व तलाश करती है उन सभी संबंधों के धागो को बुनती हुई आगे बढ़ती है संबंधों के धागे का पहला सिरा मैं था दूसरे सिरे के छोर पर अनेक कहानियाँ का अस्तित्व था वह प्रत्येक कहानी को बुनती किसी सिरे को मायूस नहीं होने देती रेशमी धागों की नाज़ुक संबंधों पर टिकी कहानी केवल चाय की प्याली नहीं बल्कि ज़िंदगी के ताने बाने को मधुर आकार देती है वह महज़ किसी ठेले टपरी या खपरैल वाली झोपड़ी तक सीमित नहीं रहती वो रेशमी धागों को बुनती हुई कहानी को अंजाम तक पहुँचती है ॥

परिवार दोस्ती प्रेम राजनीति समाजी सांस्कृतिक व्यावसायिक संबंधों की बुनियाद रखने में चाय की प्याली के योगदान को कभी भूल नहीं सकता अनेक सिरे बुनती वो चाय ही थी जो कभी स्कूल के बाहर की टपरी में धागों की रेशमी बंधन को बुनती रही स्कूल छूटा मगर चाय ना छूटी वह धागों की डोर कॉलेज की ओर ले गई कभी कॉलेज से थोड़ी दूर खप्पर वाली झोपड़ी में पकौड़ियों के साथ गरम चाय की प्याली के साथ आगे बढ़ी कॉलेज में चाय की प्याली ने कमाल किया अदृश्य धागो ने ख़ूबसूरती का ऐसा घना जाल बिछाया कि मैं उसमें खोया रहा उसका नशा किसी अन्य नशे से कम नहीं ज़्यादा ही था ॥

परिवार के साथ सुबह की पहली चाय की प्याली ऊर्जा देने का काम करती तो सारा दिन राजनीतिक व्यावसायिक जैसे बाहरी सम्बन्धो को सम्भालती है शाम मित्रों के नाम होती हुई इन सबको धागों में पिरोती है इस तरह मेरे साथ चाय की प्याली की यात्रा भी चलती रही दोनों एक दूसरे के पूरक बने रहे कभी एक दूसरे को छोड़ देने का विचार नहीं किया वह होंटों को संदेश देती मैं उससे बातें करता जाता कभी यात्रा में उसने कमाल किया उसे अविस्मरणीय और यादगार बना दिया उसे भूल पाना मेरे लिए कभी मुमकिन नहीं हुआ एक बात ज़रूर है चाय की प्याली मैंने कभी पूरी नहीं पी साथ देने वाले को आधी पिलाकर संबंधों को पूर्णता देता रहा ॥

इनमें बारिश के वो दिन भी शामिल हैं जो बरस दर बरस जीवन में आते रहे जिसे मैं अपने दिल के बहुत क़रीब पाता हूँ बरसात का दस्तक देना ,मन की उन यादों को छेड़कर धागो के ताने बाने बुनने लगता है जो कभी बारिश में भीगते हुए चाय की प्याली से शुरू हुए थे ये सिलसिले लंबे चले , चलते रहे चाय की प्याली भी मेरे साथ चलती रही वो अपना दायित्व कभी नहीं भूली ,चाय अगर सिर्फ़ चाय होती तो और बात थी मगर वो तो मेरी जीवन यात्रा को आगे बढ़ाने वाली थी चाय की प्याली यादों के धागों को बुनने में लगी रही अनकही अनबूझी यादें समेटती रही वह होटों से वह सब कहती रही जो पीछे छोड़ आया ॥

कभी वह दूर दराज़ गाँवों तक जा पहुँची जहां कहने को तो कुछ नहीं था मगर संबंधों को निभाने की परंपरा थी और कुछ ना सही पर चाय की प्याली ज़रूर मौजूद थी ना दिखायी देने वाले धागों को गढ़ती बुनती चाय मीलों की यात्रा करती रही जंगलों पहाड़ों में उसकी मौजूदगी रोमांच को और बढ़ाती बड़ी सुकून पहुँचाती ॥

कभी मेरे बचपन के साथ उन मेलो में पहुँची जहां जीवन हँसता गाता झूमता नज़र आता है मैंने पाया कि उसकी मौजूदगी यहाँ भी ऊर्जा दे रही है तब बचपन को मालूम नहीं था कि चाय की प्याली भविष्य में धागों को इतनी मज़बूती देगी जो जीवन यात्रा के आने वाले दिनों को सुखद यादों का सेतु तैयार करेगी चाय को भी अहसास नहीं था कि वो मेरे लिए सुनहरे धागों के ताने बाने बुन रही ॥

शीतकाल में रूह को कंपा देने वाली कड़कड़ाती ठंड में मन सहज ही चाय की प्याली ढूँढने लगता है मैंने भी ढूँढी मगर अकेले नहीं मौसम के अनुकूल कोई साथी ढूँढ लिया करता था काँपकपाते होटों से बातें करती नशे की तरह तन और मन को ताज़गी और स्फूर्ति से भर देती है ॥

घर से निकलकर कभी मेरे साथ रेलगाड़ी के डिब्बे में आ पहुँची मेरी यात्रा को उबाऊ नहीं होने दिया अनजान चेहरों के बीच अपनों का भास हुआ मेरे सिरे से अनेक सिरे जुड़ते चले गये स्टेशन की भीड़ में चाय – चाय की आवाज़ लगाते सिल्वर के केतली और कुल्हड़ लिए दौड़ लगाते लोगों से चाय लेकर पास बैठे अनजान लोगों से धागे बुनकर संबंधों को नयी दिशा दी ये चाय की प्याली ही थी जो हर कदम पर संबंधों को सहेज रही थी चाय ना जाने कितने संबंधों के धागे बुन रही थी ॥

आज बारिश अपने निराले अंदाज़ में थी बारिश भी नशे में झूमकर बरस रही थी उसे आभाष हो गया था आज चाय चलेगी खूब चलेगी घर की बालकनी में बैठा मैं चाय की प्याली के साथ अब तक की जीवन यात्रा की सुखद यादों में खोया था ये उससे जुड़ी यादें ही थी जो बार बार मुझे वहाँ ले जाने को मजबूर कर थी ॥

पिछले कई दिनों से हो रही बारिश से शरीर में रह रहकर सिहरन दौड़ रही थी श्रीमती जी की आवाज़ ने चौकाया महाशय जी आज की तीसरी प्याली है बारिश में चाय के प्रति मेरी दीवानगी को जानती थी मैं स्कूल और कॉलेज के दिनों की यादों धागे बुनने में लगा था कि रफ़ी साहब के गाये गीत ने बारिश में चाय के नशे को और बढ़ा दिया “ दो घूँट चाय मैंने पी और सैर दुनिया की करके मैं आ
गया आ गया “ चाय की प्याली होंटों से अलग कर मैं भी गुनगुना उठा ॥

क़लमकार
हरजीत सिंह मक्कड़ मौलिक लेख
बिलासपुर छत्तीसगढ़

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