चांद ना उतरे मेरे अंगना
चांद से टूटा नाता मेरा
नही उतरे सखी मेरे अंगना.
गुमसुम पड़ा है करवा मेरा
छलनी भी है बड़ी उदास
लाल चुनरिया श्वेत हो गई
सूनी कलाई करे अठ्ठहास
देर सबेर दिख जाय ग़र
अब नही उसकी दरकार
व्रत पूजा मौन हो गये
नही है उसका इंतजा़र
ग्रहण लग गया चांद को मेरे
कंठ अभी तक हैं प्यासे
कारे कारे मेघ लिए
बीत रही है सारी रैना
चांद से टूटा नाता मेरा
नही उतरे सखी मेरे अंगना.
////ईति////
प्रमदा ठाकुर अमलेश्वर
रायपुर छत्तीसगढ़.