सापेक्ष्य-संवेदन
बम फटने का दु:ख तो होता है पर उतना ज़्यादा नहीं,चाय के — ठंडे होने के दु:ख जितना। कहीं देखकर...
बम फटने का दु:ख तो होता है पर उतना ज़्यादा नहीं,चाय के — ठंडे होने के दु:ख जितना। कहीं देखकर...
नौकरी मे यूँ हुआ अक्सर जोकरों को भी कहा सर सर। चार मिसरे जो न लिख पाए मंच पर बैठे...
न दैरो हरम का पता चाहती हूँ ये रब जानता है मैं क्या चाहती हूँ के दम घुट रहा है...
मान बढ़ा भी सकते हैं हम मान घटा भी सकते हैं,, आंच पड़ी स्वाभिमान पे तो तलवार चला भी सकते...
तुम यादों के अतल गर्म में,मैं धरती पर रहती हूॅं। मौन तुम्हारा मुखरित करने,मैं शब्दों से गहती हूॅं। दुःख के...
कई मित्र स्त्रियां मेहरबान हैं दे रही हैं बधाई हम पुरुषों को बता रही हैं पुरुष दिवस है आज! वैसे...
प्रभाष जोशी जी आज होते तो 85 वें वर्ष में प्रवेश कर रहे होते। 11 बरस हो गए आज ही...
एक तस्वीर बन के रहते हैं अब न जीते हैं और न मरते हैं पाक दामन रहे हमेशा हम हम...
- दिवाकर मुक्तिबोध थोड़ा बड़ा हुआ तो कुछ समझ भी बढी। लेकिन बचपना फिर भी था। पूरी बेफिक्री थी। मैं...