June 28, 2024

सुशोभित जी का लेख पढ़ा हो तो…

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मैं फ़ेसबुक पर सुशोभित जी के लेख पढ़ता रहता हूँ बहुत ही उम्दा लिखते है। इनके लेखन ने हर बार मुझे प्रभावित किया है। सभी विषय पर इनकी गहरी पकड़ दिखती है।सुशोभित जी को पढ़कर मेंने जीवन में नया दृष्टिकोण पाया है सुशोभित जी किताब ने बहुत कुछ सिखाया है एक नया अनुभव दिया है मुझे। सुशोभित जी के ओशो पर लेख पढ़कर ही मेरी रुचि ओशो की वाणी में जाग गई और मैंने रोज़ ओशो को सुनना शुरू कर दिया और जब सुशोभित जी की किताब आई तो मुझे जल्द ही इसे पढ़ने की इच्छा जाग्रत हुई।
सुशोभित जी की लेखन शैली के बारे में बस इतना ही कहूँगा अगर शुद्ध हिन्दी सीखनी हो तो सुशोभित जी को पढ़ लेवे। इनके लेखन में गहराई के भाव छिपे होते है।

सुशोभित जी द्वारा लिखित किताब ‘ मेरे प्रिय आत्मन्’ आचार्य रजनीश (ओशो) के जीवन का वर्णन करती है
ओशो अपने प्रवचनों में कहते थे ‘’ में धार्मिकता सिखाता हूँ , धर्म नहीं। मैं ईश्वरत्व की बात करता हूँ , ईश्वर की नहीं।’’ । ओशो ने दुनिया के हर प्रश्न पर विचार किया तथा धर्म अध्यात्म दर्शन को बहुत सारी रूढ़ियो से बाहर निकाला है।
ओशो के बारे में प्रामाणिक साक्ष्य देखकर सुशोभित जी का गहन अध्ययन दिखता है। मैंने इस किताब से ओशो का पूरा जीवन चित्रण जाना है बहुत सारी जानकारिया मेरे सामने आई जो में दंग रह गया ।ओशो को सुनकर उनके प्रति लगाव और आकर्षण हो गया था लेकिन जब जाना की आचार्य रजनीश में कमियाँ भी थी तो एक धक्का सा लगा लेकिन सत्य सत्य होता है। फिर भी उनके जीवन में वो क्या थे या क्या किया इससे ज़्यादा में उनके विचारो को अपनाता हूँ । ओशो के तार्किक विचारो को ग्रहण करता हूँ। सुशोभित जी ने लिखा हे कि किससे क्या सीखना है इसमें भी कला होनी चाहिये।
ओशो के अनेक नाम हुए है जो इस प्रकार है- राजा, चंद्र मोहन, रजनीश , ज़ोरबा द बुद्धा , श्रीरजनीश, ओशो रजनीश और ओशो।
ओशो का शिक्षा क्षेत्र विविध था, और उन्होंने दर्शन, ध्यान, योग, प्रेम, सेक्स, और विज्ञान के मुद्दों पर अपने विचार रखे। उन्होंने अपनी वाणिज्यिक करियर को छोड़कर सन् 1970 में पुन: ध्यान और आत्म-विकास के प्रति अपनी श्रद्धा को पूरी तरह से समर्पित कर दिया।
ओशो की विशेषता उनकी वाणी में थी, जिसमें उन्होंने समस्याओं के सामान्य दृष्टिकोण को बदलने के लिए अनूठे तरीके से सोचा और उन्हें प्रस्तुत किया। उनके विचारों में जीवन के प्रत्येक पहलु को खोजने और समझने की प्रेरणा थी।

इस पुस्तक में एक वाक्या आया है जिसका जुड़ाव मुझसे रहा है और जिसको मैंने अनुभव किया है और ये मेरा निजी अनुभव रहा है इसमें एक वाक़या आया था कि ओशो ने राधास्वामी पंथ के बारे में भी विचार कहे। जब मेंने सुना ओशो का ये वाक़या तो वे बताते है कि एक व्यक्ति आया था उसने खंड के बारे में पूछा की कितने खण्ड होते है हमारे संत तो अंतिम खण्ड सत्खंड का बताते है । ओशो कहते है की आपके संत १४ खंड में अटके हुए है और में १५ खण्ड में । जब मैंने ये सुना तो मुझे भी हँसी आ गई। ये वाक्या ही ऐसा था।
लेकिन में कम से कम १० साल से राधास्वामी सतसंग सुनता आ रहा हूँ पर उसमे भी मेंने वही सुना जो अब ओशो की वाणी में सुनता हूँ दोनों का उद्देश्य एक ही है ध्यान और केवल शब्द धुन पर ही ज़ोर देते है ।
में राधास्वामी के प्रवचनों को भी सुनता हूँ और ओशो को भी सुनता हूँ।ओशो को सुनना एक शांति देता है वो तार्किक बात करते है दोनों में समानता भी ख़ूब है दोनों ही परम शून्य की बात करते है। ओशो की बहुत सी बातो को ग्रहण करता हूँ पर सभी बातों से सहमत नहीं हो सकता।
ओशो के विचार से इसलिये प्रभावित होता हूँ क्योकि वो तर्क के साथ बात रखते है और जीवन के मार्गदर्शन में मुझे ओशो को सुनने ने से एक दिशा मिलती रहती है । शरीर में आत्मशांति का अनुभव होता है सुनने से।

पुस्तक के बारे में मेरी यही राय है कि एक बार ये सभी को पढ़नी चाहिये भले वो ओशो से प्रभावित ना रहे हो लेकिन सुशोभित जी को पढ़ा हो तो।
समीक्षक- अनिल मालवीय (अध्यापक)

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