May 20, 2024

‘रेत’ और ‘विमुक्ति दिवस’

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भगवान मोरवाल

31 अगस्त और देश के कुछ ऐसे भी हिस्से हैं जहां स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त को नहीं बल्कि 31 अगस्त को ‘विमुक्ति दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। यह आश्चर्य की बात है कि देश के करोड़ों लोगों के लिए दूसरा स्वतंत्रता दिवस भी है। भारत में शासन कर रहे अंग्रेजों ने 1871 में ‘आपराधिक जनजाति अधिनियम’ लागू करके कई जनजातियों को जन्मजात अपराधी घोषित कर दिया था। इसका एक कारण 1857 का विद्रोह भी समझा जाता है। जानकार मानते हैं कि इस विद्रोह में कई जनजातियों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। विद्रोह से घबराए अंग्रेजों ने भारतीयों पर नज़र रखने और उन्हें नियंत्रित करने के लिए दर्जनों कानून बनाए। लेकिन इन कानूनों से उन जनजातियों पर नियंत्रण पाना बेहद मुश्किल था जिनका कोई स्थायी ठिकाना नहीं था और जो हमेशा से यायावर रही थीं। इसलिए ऐसी जनजातियों को नियंत्रित करने के लिए इन्हें सूचीबद्ध किया गया और ‘आपराधिक जनजाति अधिनियम’ के तहत इन जनजातियों के सभी सदस्यों को अपराधी घोषित कर दिया गया।
लगभग 180 सालों तक देश की व्यवस्था ने इन जनजातियों को कानूनी तौर पर जन्मजात अपराधी माना है।
1871 में बने इस अधिनियम में समय-समय पर संशोधन किये गए और धीरे-धीरे लगभग 190 जनजातियों को इसके तहत अपराधी घोषित कर दिया गया।

लेकिन देश की आजादी के पांच साल बाद 31 अगस्त, 1952 को देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इन जनजातियों को अंग्रेजों द्वारा बनाए गए ‘आपराधिक जनजाति अधिनियम’ को समाप्त कर से इन जनजातियों को आजादी (विमुक्ति) दिलाई । इसीलिए इन जनजाति के लोगों ने 31 अगस्त को ‘विमुक्ति दिवस’ के रूप में मनाना शुरू कर दिया और इसे दूसरे स्वतंत्रता दिवस के तौर पर देखा जाने लगा।

‘रेत’ उपन्यास दरअस्ल इन्हीं ज़ुल्मों की बर्बर और लोमहर्षक कथा है । यह ऐसी ही एक अपराधी जनजाति कंजर समुदाय के सामाजिक तानेबाने का आख्यान है ।

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