May 20, 2024

यंग की दो सौ साल पुरानी मसूरी

0

कर्नाटक की गर्मी में कुछ साल बिताने के बाद 1814 के आसपास कैप्टन फ्रेडरिक यंग नामक एक आर्मी अफसर का स्थानांतरण देहरादून हुआ। देहरादून की जलवायु उन्हें अपने देश आयरलैंड जैसी ही लगी तो यहां राजपुर रोड में उन्होंने घर बना लिया, जिसे उनके जन्म प्रांत के नाम पर ‘डोनेगल’ हाउस के नाम से जाना जाता था। अपने एक साथी के साथ वह शिकार के लिए अक्सर मसूरी के जंगलों में जाया करते थे। उन्हें यह जगह और भी ज़्यादा पसंद आई । शूटिंग रेंज के बहाने एक कच्चा घर उन्होंने यहां की मलिंगार पहाड़ी पर बनवा लिया।

चूंकि उन्हीं दिनों कैप्टन यंग ने गोरखाओं के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी थी , जिसमें अंग्रेजी सेना के भी बहुत जवान घायल हुए थे। बरसात के समय हैजा, टाइफाइड और पीलिया जैसी बीमारियों से मरने वाले सैनिकों की संख्या भी लगातार बढ़ने के कारण कैप्टन यंग ने लॉर्ड विलियम बेंटिक से यहां एक सैनिटोरियम बनाने की अनुमति मांगी।
घायल और बीमार अंग्रेज सैनिकों की देखभाल के लिए सैनिटोरियम के आसपास ही नर्स और सिस्टर्स के लिए भी आवास की व्यवस्था की गई। उनकी दैनिक जरूरतों के लिए जो दुकानें बनीं, उन्हीं का विस्तार, वर्तमान में यहां का मशहूर सिस्टर बाज़ार है।

मसूरी की आबोहवा कैप्टन को बहुत पसंद आई, अंग्रेजों के लिए यह एक स्थाई हिल स्टेशन बन जाए, इसके लिए उन्होंने यहां हर संभव सुविधाएं जुटाने का प्रयास किया। मसूरी में आलू की खेती शुरू करवाने और देहरादून में चाय बागान बसाने का श्रेय भी कैप्टन यंग को ही जाता है। कैप्टन यंग से प्रेरित होकर ही शिमला, दार्जिलिंग, लैंसडाउन, कसौली, अल्मोड़ा, नैनीताल, रानीखेत, डलहौजी, ऊटी जैसे अनेक ठंडी जलवायु वाले जगहों पर अंग्रेज अफसरों ने घर बनाकर उन्हें हिल स्टेशन के रूप में बसाने का प्रयास शुरू कर दिया।

तमाम उम्र मसूरी को ख़ूबसूरत बनाने में जुटे रहे कैप्टन फ्रेडरिक यंग जीवन के आख़िरी वर्षों में अपने देश आयरलैंड लौट गए। देहरादून में उनके नाम पर एक रोड भी है, मगर अफ़सोस कि ‘पहाड़ों की रानी’ मसूरी में उनके नाम पर कुछ भी नहीं।
मसूरी शहर की स्थापना के दो सौ बरस पूरे होने जा रहे हैं । इस अवसर पर फ्रेडरिक यंग की पड़पोती रिचेल और कैरोलिन यहां आई हैं। मसूरी में अनेक समारोह आयोजित किए जा रहे हैं जिनमें इनको मुख्य अतिथि बनाया गया है।

आयरलैंड से अन्य लोग भी समय-समय पर अपने पूर्वजों की क़ब्र देखने मसूरी आते रहते हैं। देह भले ही मिट्टी में मिल जाती है, किंतु आत्मा का अस्तित्व सदैव बना रहता है , और यह हमारा अवचेतन मस्तिष्क है, जिसमें न जाने कितने जन्मों की यादें बसी रहती हैं, इसी कारण हमें अनजाने लोग, अनजाने शहर अपनी तरफ खींचते हुए से मालूम होते हैं।
जिन्हें लुभाती है मसूरी , क्या आश्चर्य कि कभी वह भी रहे हों कैप्टन यंग के साथ यहां । हो सकता है किसी क़ब्र के बग़ल से गुज़रते हुए आपको महसूस हो अपना कुछ छूटा हुआ सा।

# प्रतिभा नैथानी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *