‘तट के पाथर
कोई कविता कुछ भी सिद्ध नहीं करती, सिवाय एक अनुभव को रचने के मैंने भी यही एक प्रयास किया है ‘तट के पाथर में’
प्रकाशक अनामिका पब्लिशर्स ,नई दिल्ली
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शब्द ब्रह्म अन्तराष्ट्रोय मासिक शोध पत्रिका के संपादक, विभागाध्यक्ष महाराजा रणजीत सिंह कॉलेज ऑफ प्रोफेशनल साइंसेज और श्री मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति के शोध मंत्री डॉ पुष्पेंद्र दुबे सर (जिनकी मैं विद्यार्थी भी हूँ )की महत्वपूर्ण टिप्पणी नये संग्रह ”तट के पाथर पर” यह कृति पर पहली टिप्पणी है |
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निबंधकार, पत्रकार और अब कविताओं के सृजन की भूमिका में डॉ शोभा जैन का यह नया काव्य संग्रह ‘तट के पाथर अपने आप में अनेक संभावनाओं को समेटे हुए है। उन्हें स्त्री मन की अच्छी समझ है।कविताएं आज की परिस्थितियों को लेकर एक पूरा चित्र खडा करती हैं, जो पाठक को विचार करने और स्वयं को अभिव्यक्त करने के लिए प्रेरित करता है।
एक रचना वह होती है, जिसे पाठक सिर्फ पढ जाता है। और उसे एक तरफ रख देता है। लेकिन शोभा जी की रचनाओं के साथ ऐसा नहीं किया जा सकता। विचारशील और सह्रदय पाठक उस पर अपनी टिप्पणी दिए बिना नहीं रह सकता। उनकी रचनाएं भारी भरकम शब्दों के बोझ से मुक्त हैं। इनमें भावनाओं का सहज प्रवाह है।
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सभी कविताएं आज के समय को रेखांकित करती हैं। आज का रचनाकार बाहर की हलचल को देखकर क्रांति की कल्पना करके मौन हो जाता है, जबकि कविता तो भीतर की क्रांति का नि:शब्द स्वर है। आपने जो रचनाएं भेजी हैं, उनमें ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे वीणा के एक तार को झंकृत कर दिया गया हो और फिर उसकी अनुगूंज देर तक सुनायी देती रहे। स्त्री-मन की संवेदनाओं को उजागर करती इन रचनाओं में स्त्री मुक्ति के अर्धसत्य को बहुत सुंदर शब्दों में रेखांकित किया गया है। ‘सिर्फ कविता में’ कवियों के दोहरे मापदंड पर सूक्ष्म प्रहार किया गया है। कवि कुछ भरता नहीं अपने भीतर सिवा उडान के पंक्तियों में इसे देखा जा सकता है। ‘हर कोना मेघालय नहीं होता’ रचना में स्त्री स्वतंत्रता के सत्य को उजागर किया गया है। अंतिम पंक्तियां बहुत कुछ कह जाती हैं यथा ‘स्त्री ने कानून बनवाए / इस दैहिक को सौंपने के / जिसे कहते हैं वेश्यालय।’ पुरुष प्रधान समाज स्त्री की ओर सदैव संदेह की दृष्टि से देखता रहा है। सभी एकतरफा फैसलों को सहने के लिए स्त्री अभिशप्त है। वैश्वीक दुनिया में केवल विकसित देश ही स्त्रियों की आजादी पर गर्व नहीं कर सकते हैं बल्कि भारत जैसे विकासशील देश के गांवों में रहने वाली महिलाएं भी अपने अधिकारों को बखूबी जानने, समझने और उनका इस्तेमाल करना सीख गयी हैं। स्त्री के संघर्ष ने अनेक बार पुरुष सत्ता को चुनौती दी है। समाज में ऐसे अनेक उदाहरण मौजूद हैं जब महिलाओं के संघर्ष ने न सिर्फ अन्याय और अत्याचार से मुक्ति की राह प्रशस्त की है बल्कि उससे संबंधित कानून भी बनवाए हैं।
निबंधकार, पत्रकार और अब कवियित्री की भूमिका में शोभा जैन का यह नया काव्य संग्रह ‘तट के पाथर अपने आप में अनेक संभावनाओं को समेटे हुए है। उन्हें स्त्री मन की अच्छी समझ है। आज की परिस्थितियों को लेकर एक पूरा चित्र खडा करती हैं, जो पाठक को विचार करने और स्वयं को अभिव्यक्त करने के लिए प्रेरित करता है। एक रचना वह होती है, जिसे पाठक सिर्फ पढ जाता है। और उसे एक तरफ रख देता है। लेकिन शोभा जी की रचनाओं के साथ ऐसा नहीं किया जा सकता। विचारशील और सह्रदय पाठक उस पर अपनी टिप्पणी दिए बिना नहीं रह सकता। उनकी रचनाएं भारी भरकम शब्दों के बोझ से मुक्त हैं। इनमें भावनाओं का सहज प्रवाह है। आशा है साहित्य जगत में इस संग्रह का स्वागत किया जाएगा। आलोचक कृति के साथ न्याय करेंगे।
शोभा जी को नये काव्य संग्रह की बहुत शुभकामनाएं और बधाई।
डॉ पुष्पेंद्र दुबे ,इंदौर