May 20, 2024

काश तुम साथ होती

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कुछ पल के लिए
और जी लेता मैं
बैठ कर बातें करते
गुज़रे हुए वक़्त का
स्वप्ने भी देखते साथ मिलकर
एक दूजे के साथ होते
लेकिन आलम ऐसा है कि
तुम साथ हीं नहीं हो
अब हर लम्हा जी लेता हूँ
तुमारी यादों के साए में
याद करके उस खुशनुमा पल को
अब लगती ज़िंदगी रुक गई है
नींद ही नहीं है आँखों में
एक ख़्वाब ही देखता रहता हूँ
खुली आंखों से देख लेता हूँ
फिर इस अलसाई आंखों तुम
आ जाती एक स्वप्न बन कर
यह ख्वाब तो जल्द ही टूट जाती है
सोचा था मैंने की तुम्हें
आसमान की तरह प्यार करूँगा
लेकिन अब हो नहीं पाया
तुम्हें यह बेबस आंखे तलाशती है हर जगह
हर अहसासों में, जज़्बातों में
सिलबटों में
अपने अश्रुपूरित बूंदों में
जो कभी नरम तकिए को गीला कर देती है
मन कभी मानता ही नहीं कि तुम साथ नहीं हो
काश तुम साथ होती इस समय में।
©रजत सान्याल
मैं आपको याद करता हूँ आज इस कठिन समय में
हे दोस्त, प्रियतम !
सभ्यता अब शमसान के बिस्तर पर
मानव के मन,
दिल दिमाग में संक्रामक महामारी छायी है
प्राण लक्ष्मी वनवास में,
रक्तपिपासु अब एक
अभिमानी संगिन में है
सुंदर को चिर कर,भेद कर,
मरते हुए फूल चिल्लाते है
बर्बर राक्षस बोलता है मैं सबसे अच्छा, सबसे महान हूं।
देश में समुद्र के किनारे पर कांपते हुए जंगली जानवरों के सामने जीवन का सुनहरा हिरण।
जीवन बंद है, जीवन स्थिर है
देश को चीर कर ले जाने की लार टपकती है
इतना दुख, इतनी घृणा
यह नरक की व्यथा कैसे सहेंगे हम मेरे दोस्त
अगर मैं रक्त में शामिल नहीं होता,
तो मुझे कोर में छेद कर दिया जाता
आपका अमर मंत्र मैंने अपने दिल में शब्द
के रूप में पाया है,
इसलिए मैं डर को स्वीकार नहीं करता हूँ
जीवन को जीत जाएंगे हम,
मुझे विश्वास है ।
रजत सान्याल

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एक अजीब रंग की पक्षी रोज़ मेरे
खिड़की एकके पास आती है
कभी आवाज़ देती है
कभी अपने गले को आगे कर देती है
कभी अपनी पंखों से कुछ बोलने की
कोशिश करती है
कभी सीटी भी बजाती है
उसने झुंड पर जो कुछ चित्र रखी है
या चित्रित की है या उसकी तस्वीर है
उसकी आँखों में एक बादल की स्मृति
की तरह दिखाई देती है
नदी के सपने के जलीय कण अभी भी
होठों में दफन हो सकते हैं
किसीको छोड़ कर आई है
अपने घोंसले के पास
शायद वह घोसला ,आकाश अब उसकी ठिकाना है
इसीलिए उसकी आँखों में एक गहरा नीले रंग है
या एक अंधेरे जैसा कुछ
जब पंखो को लहराती है तब एक नीले
रंग की उत्सव लगती है
जब मैं कुछ लिखता हूँ या पढ़ता हूँ
झुक कर कोई किताब
तब वही पक्षी नाचती रहती मेरे खिड़की पर
मेरे किताबों में सफ़ेद पन्नों में
एक आनंद खुशी की खुशबू घोल देती है
मेरे मृत्यु के बाद भी अगर वही गहरे नीले
रंग की पक्षी आती मेरे खिड़की में
बैठती है सीटी बजाती है
मेरे किताबों में सफ़ेद पन्नों को
एक खुशी की लहर में परिवर्तित करती है
तो उसे रोकना मत©रजत सान्याल
कवि की मौत
आज बहुत निर्दयी दिन है,
दो सिपाही जो हरे रंग के कपड़े पहनें थे
कवि को खींच के ले गए
कवि महोदय ने सवाल पूछे
मुझे क्यों ले जा रहे हो और क्यों
मेरे हाथ बंध है
सिपाही ने कोई उत्तर नही दिए
क्योंकि वे उत्तर दे नही सकते
उनके स्वर बंध कर दी गई है
ज़बान , जीभ काट लिए गए है
कोई रोशनी नही दिखाई दे रही है
शाम के समय में अंधेरा है
सिर्फ जूते की आवाज़ सुनाई देते है
उनके चेहरे पर एक उदासी छायी है
आंखें लगता है विज्ञापन के रोशनी से लाल है
एक छोटा रास्ता है जो एक छोटी से नदी के पास
फ्लूरोसेंट लाइट है
एक खेत है जो अभी खाली है
और चार सिपाही है , राइफल लेकर तैयार है
यह दृश्य देखने के कतार में लोग है
कोई आया है बहुत दूर से अरहर के खेत से चल कर
कोई आया है विस्सल बजा कर
और कोई अपनी दुकान बंद करके
कोई कैमरे लेकर भी
एक अंधा भी है
सब आये है एक कवि के मौत देखने
कवि को बांध दिया गया
वे देखने लगे अपनी उंगली
एक उंगली में तल है, और सब मे दर्द है
कवि को हंसी आ रही थी
एक सिपाही को बोले
खून जम गया है,
हाथ खोल दो, क्यों हथकड़ी लगाए
अचानक लोगों के आवाज़ से सिपाही कुछ बोल नही पाए
सिपाही बोल ही नहीं सकते क्योंकि
वे बहरे और गूंगे है
देखने आए लोगों से प्रश्नों के बौछार हुए
कोई बोलने लगे बिना खून खराबे
के कोई समाधान नही होगा
कोई जोर जोर से चिल्लाने लगे
गलत आदमी को लाया गया है
श्याम का वक़्त है, लाल रंग छाये हुए है
दूर जंगल में अचानक जोर ज़ोर से चिल्लाने लगा लोमड़ी
एक नारी दुःख दिखाई दिए छोटी सी नदी में
जैसे अभिमान हुआ है
कवि अपने उंगलियों के देखते देखते
देखने लगे सब लगों को
फिर उनका मन चला गया बचपन की और
वे दिखने लगे हेमंत दिन के अंतिम रोशनी
फिर देखा ब्रिज के नीचे अंधकार
अचानक झूंड जुगनू भी है
कवि को समझ आ गया
उनके बॉल हवा से बिखर गए
फिर से कवि देखने की कोशिश करते रहे
अचानक छह सिपाही जो
बहरे और गूंगे है उठा लिए राइफल
लोगों की आवाज़ जोर आने लगे
इंकलाब जिंदाबाद
कवि जोर जोर चिल्लाने लगें
क्रांति अमर रहें
इंसान को मुक्ति मिले
खोल दो मुझे,हथकड़ियां खोल दो
पहली गोली कान को छु कर गया
दूसरी गोली कवि के हृदय को छेद कर दिया
कवि फिर भी हस रहे थे
जैसे कोई पराजय हुआ ही नही
तीसरी गोली उनके गले को चीर दिया
फिर वे बोले मैं नही मरूँगा
झूठ, कवि हर समय भविष्य को नहीं देख सकते
चोथी गोली से उनके कपाल लगा
पांचवीं गोली और छटवी गोली से
कवि के हाथ टुकड़े टुकड़े हो गए
वे गिर पड़े जमीन पर
लोगों टूट पड़े जो खून जमीन पर है
उसे माथे पर लगाने के लिए
अचानक बारिश भी होने लगी
कवि के अंतिम समय आनंद से ही बीता
जमीन पर पड़े अपने हाथ के दुकड़े
को देख कर बोले मैंने बोला था ना
मुझे हथकड़ियों से बांध नही सकते ।

रजत सान्याल
(गरसिया लोरका / गरसिया स्पेनिश कवि, नाटककार
(जिन्हें फ्रैंक्स के सेना ने मार दिया था – स्पेन के गृह युद्ध के समय १८९८ -१९३६ )

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