May 20, 2024

पल्लवी मुखर्जी

एक टूटी हुई छत
टूटी हुई चारपाई
टूटा हुआ छाता
कोने में पड़ी
जंग लगी साईकिल

मिट्टी का चूल्हा
भीगी हुई लकड़ी

और
इसके अलावा
दिप-दिप करती हुई
ढिबरी की लौ

लौ
उम्मीद जगाती है
उसके भीतर
कहीं किसी कोने में
जलता है अलाव

कि वह
बदल देगा

छत
छाता
चारपाई
और
जंग लगे
साईकिल की किस्मत

किंतु
साल दर साल
ढिबरी के मद्धिम होते लौ मे
देखती है वह
उसके चेहरे की
फीकी होती रंगत

देखती है वह
ढोते हुए
निरंतर एक बोझ

जैसे साईकिल नहीं
उसकी देह हो

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