May 20, 2024

सुनहले पिंजरे में पैक जादू…

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तुमने नदी को
बोतल में
पैक किया
पहाड़ को
खुदाई के औजारों में

हवा को
सिलिंडर में
आकाश को
बालकनी में
वन को
गमलों में
मन को
बंगलों में

जीवन को
बमों के
परमाणु में
हाथ को
रिमोट में
पैरों को
यानों-विमानों में

अब तुम
सुनहले खेतों को
चमकीले रैपर में
गिफ्ट-पैक करोगे !
और हरषाते खलिहानों को
लूटती दुकानों में

ओ ! दुनिया को
मुक्ति के बहाने
कैद करने वाले
सम्मोहक जादूगर !
तुम्हारे—सिर्फ तुम्हारे
और सिर्फ तुम्हारे—
मुनाफे का यह निशा-जादू
कब टूटेगा !

तुम्हारी जान
आखिर किस
सुनहले पिंजरे के तोते में
बसी है
—पता तो लगे !
तभी
तुम्हारा यह
सम्मोहन जादू टूट पायेगा !

पर एक दिन
टूटेगा जरुर !
जादू भरी रात
बीतेगी जरूर !
मुनाफे का कहर
हटेगा जरुर!

खेत में बीज उगेगा !
आदमी फिर
गीत गाएगा !
जीवन की हवा
फिर मचलती बहेगी !
बहेगी—जरुर बहेगी !
सोती हुई दुनिया
करवट लेती
फिर उठेगी !

—शीलकांत पाठक

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