May 20, 2024

रस की धार अनंत बहती थी….

0

रस की धार अनंत बहती थी
अंजुरी भर भर पीया हैं हमने

प्रेम प्रकाश के छाँव तले
जीवन मधुर जीया हमने

जीवन की अब साँझ हो गई
अब सोने की बारी है

कोई द्वार पर दस्तक देता
आँख भी उसकी भरी है

अपनापन और अधिकार से
घर में आन समाया है

मेरी आँख की बहती धारा
देख के वह भी रोया है

मधुर स्मृतियों मे खोई थी
वह यथार्थ दिखता है

बार बार अपने शब्दों से
वह मुझको समझता है

लगता है मैं भूल भी जाऊँ
पर अतीत तड़पाता है

वर्तमान में जीने को
वो मुझको उसकाता है

जब तक मौत नहीं आती है
यह जीवन तो जीना है

क्यों न दरिया पार करे हम
उसके हाथ सफ़ीना है

अब उसके संग मरना है
शबनम अब संग जीना है ।

शबनम मेहरोत्रा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *