April 28, 2024

एक पंछी अभी-अभी
उड़ कर आया
ऐसी जगह बैठा
जहां एक मनुष्य की
छाया पड़ रही थी

मनुष्य जहां खड़ा था
उसने अपने सिर पर
तान रखा था छाता
जो अभी-अभी
आया था दरख्त तले

दरख़्त खड़ा था
पहाड़ की तराई में
जहां पड़ रही थी
पहाड़ की छाया

पहाड़ पर किसकी छाया?

– पहाड़ पर आकाश की छाया!

आकाश को भेद रहा सूरज
ये कौन समझ पाया !

– शुचि मिश्रा

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