अभी-अभी
अभी-अभी मैंने
हरसिंगार को खिलखिलाते देखा
अभी-अभी मैंने
एक नदी को अठखेलियाँ करते हुए
समंदर की ओर बहकर जाते देखा
अभी-अभी मैंने
मेरी टेबल पर रखी किताब के पन्नों को
हवा से फड़फड़ाते देखा
अभी-अभी मैंने खुली खिड़की से
ढेर सारी तितलियों को उड़ कर
अंदर आते देखा
अभी-अभी मेरी तुमसे
फोन पर बात हुई
अभी-अभी मैंने
अपने लबों पर ज़िंदगी को
मुस्कराते देखा!!
– अनिला राखेचा