फोटो बन दीवार पर
आती और जाती साँसों के संघर्षों में हारकर
इक दिन हम भी टंग जायेंगे फोटो बन दीवार पर.
अभी पिताजी टंगे हुए हैं, दादाजी खंगार में
परदादा ढूंढे न मिलें घर के कोने कुचियार में
इक दो पीढ़ी मुझे रखेंगी, रखे अगर उपकार कर
आती और जाती साँसों के संघर्षों में हारकर…………….
तड़ तड़ फोटो खिंचा रहा हूँ, आड़ा हो फिर टेड़ा हो
सेल्फी बात-बात पर लेता, दिन हो, शाम, सवेरा हो
नहीं सोचता यह कचरा, रक्खेगा कौन संवार कर
आती और जाती साँसों के संघर्षों में हारकर……………..
एक पल नहीं सोचता उसकी जो फोटो में न आता
जीता हूँ जिसके बलपर उसको ही देख नहीं पाता
ज्ञानी समझाते समझाते, बैठ गए थक हारकर
आती और जाती सांसों के संघर्षों में हार कर……….
जुटा हुआ हूँ रात और दिन माल इकठ्ठा करने में
सच पूछो तो बस जी का जंजाल इकठ्ठा करने में
बेईमानो को गले लगाकर सच्चों को दुत्कार कर
आती और जाती साँसों के संघर्षों में हारकर…….
एक आवाज़ पे खड़े डॉक्टर नौकर सभी इशारे पर
चाहूँगा तो बुलवा लूँगा सब अधिकारी द्वारे पर
लेकिन सब क्या कर पाएंगे होगा यम जब द्वार पर
आती और जाती साँसों के संघर्षों में हारकर………………..
यही सोच कोशिश करता हूँ कुछ सार्थक भी कर जाऊं
हीरे सा अनमोल ये जीवन नहीं निरर्थक कर जाऊं
जितनी साँसें बची हुई हैं जी लूँ सबको प्यार कर
आती और जाती साँसों के संघर्षों में हारकर……………
इक दिन हम भी टंग जायेंगे फोटो बन दीवार पर.
दिनेश मालवीय”अश्क”