अलिखित चिट्ठियाँ
तुम्हारे जन्म की
तारीख और जगह
नही जानती थी
पर तब भी पता था
कि इस दुनिया मे तुम हो
बनफूलों का
कुनमुना के आंख खोलना
ठूंठ का हरियाना
और तितलियों के पंखों पर
पीले रंग की चमक में
तुम्हारा ही होना था
उधर से आती हवा
बांचती थी
तुम्हारी अलिखित चिट्ठियां
कि तुम्हारे देश में भी
इन दिनों जमी है धुंध
इसी धरती और
आकाश के बीच
गुजरती किरणो में
बुना था तुमने
कोई भोला गुलाबी सपना
कहीं दूर छत पर कभी
कटती पतंगों को
तुमने संभाला होगा
बांधा होगा मजबूत मांझे से
और उड़ा दिया होगा
उसे मेरी दिशा मे
दुआओं की तरह
मिलना हुआ है तुमसे
इसी धरती पर
जहां नदी की दो धाराएं मिलती हैं
वह पल नियोजित नही
प्राकृतिक था
कुदरत के बाकी नियमों की तरह
~ मृदुला सिंह
(2017)