पौधा कोई पतझर में…
पौधा कोई पतझर में भी सूखा न छोड़िए
लौट आएगी बहार, यह आशा न छोड़िए
माँगे की रोशनी का भरोसा नहीं है कुछ
जुगनू की तरह रहिए, चमकना न छोड़िए
दुनिया नहीं तो कोई भी आशा, न आसरा
सच्चाइयों से भाग के दुनिया न छोड़िए
बिखरे हुए जो शूल हैं, चुन डालिए उन्हें
रस्ते के दरमियाँ कोई काँटा न छोड़िए
माँझी का धर्म सीखिए, नौका बनाइए
बिन किश्तियों के कोई भी दरिया न छोड़िए
एक ग़ज़ल आपकी सेवा में, आपकी प्रतिक्रिया तो अपेक्षित है ही.
गिरिराजशरण अग्रवाल