November 15, 2024

पौधा कोई पतझर में भी सूखा न छोड़िए
लौट आएगी बहार, यह आशा न छोड़िए

माँगे की रोशनी का भरोसा नहीं है कुछ
जुगनू की तरह रहिए, चमकना न छोड़िए

दुनिया नहीं तो कोई भी आशा, न आसरा
सच्चाइयों से भाग के दुनिया न छोड़िए

बिखरे हुए जो शूल हैं, चुन डालिए उन्हें
रस्ते के दरमियाँ कोई काँटा न छोड़िए

माँझी का धर्म सीखिए, नौका बनाइए
बिन किश्तियों के कोई भी दरिया न छोड़िए

एक ग़ज़ल आपकी सेवा में, आपकी प्रतिक्रिया तो अपेक्षित है ही.

गिरिराजशरण अग्रवाल

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