November 15, 2024

अपने भीतर अवसादों को
भोगूँ या फिर आह! करूँ।
जिस जग ने मुझको ठुकराया
उसका क्यों परवाह करूँ।।

मेरे होने और न होने
से दुनिया को फर्क नहीं।
औरों के जैसे ही दुख से
मेरा बेड़ा गर्क नहीं।।

जिन नैनों ने मुझको ढूँढा
उसकी ओर निगाह करूँ

परिपाटी के शीशमहल से
अच्छी चीजें ही छानी।
उसमें मेरी ही इच्छा है
या फिर मेरी मनमानी।।

मैंने सपन सँजोये हैं कुछ
क्या मैं उनका दाह करूँ

धन के पीछे बौराया जग
मूल्य नहीं है भावों का।
बिन पैसों के कैसे क्रय हो
मरहम मेरे घावों का।।

इसीलिए तकलीफों का भी
हँसते-गाते वाह करूँ

उमाकान्त टैगोर
कन्हाईबंद, जाँजगीर

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