November 15, 2024

नहीं चाहिए
नहीं चाहिए किसी को
प्रेम!

आज की दुनिया जैसी
नहीं है रफ़्तार उसकी

अलग-थलग पड़ा रहता है
कोने में
जैसे देवता के समीप कोने में
पड़ा रहता है
प्रकाश दीप कोई
प्रज्ज्वलित रहता है प्राणप्रण तक
मौन साधना -रत

दुनिया रही है सदा -व्यवहार की
लेन -देन की सांसों से
रहती है जिंदा
स्वार्थ की जड़ों से
पोषण पाती है

स्वार्थ की डोर से
बंधें रहते हैं
रिश्तों के मनके सभी

टूटने से डोर
बिखर जाते हैं रिश्तों के मनके
रुक जाती है दुनिया की रफ़्तार

अतः
बंधी रहे डोर
जुड़े रहे रिश्ते
जिंदा रहे स्वार्थ
जिंदा रहे व्यवहार

नहीं है
हां नहीं है ज़रूरत
दुनिया को
प्रेम की

प्रेम होगा
जब जब जिंदा
तब तब मरेगा
मौत अपनी

दुनिया बना देगी
कब्र पर उसकी
एक दिन
इमारत या मकबरा कोई!

–मीनू मदान

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