पारंपरिक परिधान में झलकी छत्तीसगढ़ की समृद्ध संस्कृति
छत्तीसगढ़ के अलग-अलग हिस्से में रहन-सहन खान-पान, रीति-रिवाज प्रचलित हैं, यह अंतर वेशभूषा भी दिखाई पड़ता है। राजधानी रायपुर के साइंस कॉलेज मैदान में चल रहे युवा महोत्सव में पारंपरिक वेशभूषा पर आधारित प्रतियोगिता में यह देखने को मिली। पारंपरिक वेशभूषा में सजे-धजे युवाओं ने दर्शकों को आकर्षित किया। दर्शकों ने भी इसे पसंद किया।
पारंपरिक वेशभूषा की इस प्रतियोगिता में युवतियों और महिलाओं ने भाग लिया। संभागवार आयोजित इस प्रतियोगिता में युवतियां वनवासी महिला, मछवारिन महिला, भरथरी गायिका आदि के रूप में प्रस्तुत हुई। इन युवतियों ने परिधानों के साथ-साथ गोदना, कौड़ी पटिया, झुमकी, लहुंटी, नागोरी, ककनी, कड़ा, मुंदरी आदि से श्रृंगार किया वहीं महिलाओं ने पारंपरिक परिधानों के अलावा झाबा, क्लिप, कूकरी पाँख, ऐंठी, कड़ा, हरी चूड़ी, सुर्रा, सिरपा, गोप, रुपिया, करधन, लच्छा का उपयोग श्रृंगार में किया।
15 से 40 वर्ष तक के आयुवर्ग में पहला स्थान पाने वाली सरगुजा की बिंदिया राजवाड़े ने गोदना, कौड़ी पटिया, झुमकी, लहुंटी, नागोरी, ककनी, कड़ा, मुंदरी, सुर्रा, मोहरमाला, रुपिया माला, पनहा, कमरछल्ला, तोड़ा, पैजनी चुटकी से, दूसरा स्थान पाने वाली बस्तर की निहारिका कश्यप ने वनवासी महिला के रूप में रुपिया, कंगनी, लच्छा, सांटी, तोड़ा से और तीसरा स्थान पाने वाली दुर्ग की लीलेश्वरी साहू ने कलगी, फीता, सेवंती का गजरा, टिकली, बिंदिया, मांग मोती, रुपिया, कंगनी, करधन, लच्छा, सांटी, तोड़ा, पैजन, अंगूठी, बिछिया का श्रृंगार कर वेशभूषा में प्रस्तुति दी।
वहीं 40 वर्ष से अधिक के आयुवर्ग में पहला स्थान पाने वाली महासमुन्द जिले की हेमिन ठाकुर ने खुद को खेतिहर महिला के रूप में प्रस्तुत किया। हेमिन ने झाबा, क्लिप, कूकरी पाँख, ऐंठी, कड़ा, हरी चूड़ी, सुर्रा, सिरपा, गोप, रुपिया, करधन, लच्छा, सांटी से श्रृंगार किया था। दूसरा स्थान पाने वाली सक्ती जिले की कमलादपि गबेल ने भरथरी की सुप्रसिद्ध लोकगायिका सुरुज बाई खांडे के सम्मान में भरथरी गायिका के रूप में स्वयं को प्रस्तुत किया। तीसरा स्थान पाने वाली कोंडागांव जिले की अनिता साहू ने स्वयं को शिशुवती निषाद महिला के रूप में प्रस्तुत किया। अनिता ने मछली पकड़ने का अभिनय पारम्परिक ढंग से किया।