बस्तर बस्तर को समझने एक जरूरी पुस्तक
भिलाई। बस्तर के नक्सलवाद पर केंद्रित लोकबाबू द्वारा लिखित बस्तर बस्तर पर केन्द्रित समीक्षा की पुस्तक का आज वरिष्ठ लेखक श्री कनक तिवारी और वरिष्ठ आलोचक डॉ सियाराम शर्मा के आतिथ्य में संपन्न हुआ। इस अवसर पर कल्याण स्नातकोत्तर महाविद्यालय भिलाई के हिंदी विभाग के अध्यक्ष डॉ सुधीर शर्मा ने स्वागत भाषण देते हुए कहा कि यह उपन्यास देश का चर्चित उपन्यास है। इस पर अनेक समीक्षाएं, टिप्पणी,प्रतिक्रियाओं और सोशल मीडिया के संवाद का संकलन है यह उपन्यास। वरिष्ठ लेखक और चिंतक श्री कनक तिवारी ने कहा कि यह उपन्यास न होकर बस्तर का इतिहास है। भाषा और शिल्प की दृष्टि से श्रेष्ठ है। बस्तर की आज जो मौजूदा हालात है, वह कथात्मक रूप में प्रस्तुत हुआ है। सलवा जुडूम नामक अध्याय इस पुस्तक की आत्मा है। लोकबाबू जिस विन्यास से रचते हैं, वैसा दूसरा लेखक हमारे पास हैं।प्राध्यापक डॉ कोमल सिंह सार्वा ने कहा कि यह उपन्यास अपने कलेवर के साथ कथा के लिए भी उत्कृष्ट है। समीक्षाओं का यह संकलन अनुसंधान के लिए उपयोगी होगा।साहित्यकार प्रो थान सिंह ने कहा कि बस्तर का भीतरी परिदृश्य इस उपन्यास में है। समीक्षकों ने उपन्यास को गंभीरता से लिया है, उसका कारण उपन्यास की गहराई है।लेखक परमेश्वर वैष्णव ने कहा कि देश भर में हुई चर्चा को संकलित करना एक रोमांच है।शायर मुमताज़ ने कहा कि लोकबाबू ने बस्तर के अरण्य में जाकर अनुभूति के साथ लिखा है। यह संकलन विविधता पूर्ण है। कवि घनश्याम त्रिपाठी ने कहा कि बस्तर का भूगोल सूक्ष्मता के साथ प्रस्तुत हुआ है। शोधपरक उपन्यास की शोधपरक समीक्षा हुई है।लेखक विजय वर्तमान ने कहा कि बस्तर के प्रति मेरी दृष्टि इस उपन्यास से और अधिक विस्तृत हुई है।अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ आलोचक डॉ सियाराम शर्मा ने कहा कि बस्तर बस्तर लोकबाबू की महानतम कृति है। उन्होंने कहा कि आदिवासियों का जीवन लयात्मक और संगीतात्मक होता है। इस उपन्यास में इसकी अनुगूंज है। यथार्थ पर लोकबाबू की मजबूत पकड़ है। बस्तर का वर्तमान है इसमें। बस्तर एक आंतरिक उपनिवेश बन चुका है। यह समीक्षा कृति उपन्यास को जानने समझने के लिए सहायक है।बस्तर बस्तर के लेखक लोकबाबू ने कहा कि इस उपन्यास की रचना प्रक्रिया और लेखन के दौरान बस्तर के अपने अनुभव बताए।कार्यक्रम का संचालन डॉ अंजन कुमार ने किया। डॉ सुधीर शर्मा, अध्यक्ष हिंदी विभाग