नहीं रहे छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध पुरातत्व वेत्ता डॉ. हेमू यदु
छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध पुरातत्वविद् हमारे बीच नहीं रहे। समाचार सुनकर हतप्रभ रह गया।वे प्रायः कहा करते थे नरम जी मै उम्र में आपसे एक वर्ष छोटा हूं।ठहाका मारकर हंस देते थे। डॉ हेमू यदु का जन्म ८अक्टूबर १९५३ को रायपुर में हुआ था। उन्होंने पं.रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर से एम.ए., पीएच-डी (पुरातत्व विज्ञान)से किया था ।विगत तीस वर्षों से छत्तीसगढ़ के पुरा वैभव में नूतन अन्वेषण कार्य हेतु कृत संकल्पित रहे हैं।
प्रकाशित कृतियां —
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(१) दक्षिण कोशल की कला
(२) छत्तीसगढ़ का पुरातात्विक वैभव
(३) छत्तीसगढ़ का गौरवशाली इतिहास
(४)धर्म का गढ़ छत्तीसगढ़
(५) सिरपुर की महिला शिल्पी
(६) छत्तीसगढ़ का खजुराहो भोरमदेव
(७) दक्षिण कोशल की मूर्ति शिल्प में ब्रह्मा
(८) रामायण कालीन छत्तीसगढ़
(९)कलचुरि अभिलेख
(१०)कालपुरुष
(११) दक्षिण कोशल के प्राचीन शिल्पी आदि
इन्होंने अंतरराष्ट्रीय ख़ोज” ऊं नमः शिवाय एक सांकेतिक लिपि”(अंतरराष्ट्रीय नागरी लिपि सम्मेलन नई दिल्ली -१९९९)
“विश्व प्रसिद्ध ताला की अद्भुत प्रतिमा कालपुरुष “१९९९ रिसर्च से ख्याति अर्जित की।
राष्ट्रीय स्तर पर पुरातात्विक विषयक लगभग तीस शोध-पत्र प्रकाशित।
सम्मान –
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गोल्डन बुक आफ रिकार्ड,छत्तीसगढ़ अस्मिता पुरस्कार, विश्व शांति के लिए समर्पित संस्था जैमिनी अकादमी पानीपत,हरियाणा से सन् २००० में “शताब्दी रत्न सम्मान”, अखिल भारतीय युवा जैन समाज से”कला श्री सम्मान ” एवं अनेक राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं द्वारा नवरत्न सम्मान, समाज श्री सम्मान एवं राष्ट्र भाषा सम्मान आदि।
९जनवरी २०२४ को उनकी महत्वपूर्ण कृति “ओम् लिपि की रहस्यमय खोज”का लोकार्पण होना था। लेकिन ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था।वे इस धरा धाम से सदा -सदा के लिए अलविदा हो गये। हमारी विनम्र श्रद्धांजलि।