शबरी के बेर…
शबरी के बेर बोले,
तुम देर ना लगाना ।
हे राम… जल्दी आना !
हे राम… जल्दी आना !!
पलकों से पथ बुहारूं,
सूनी डगर निहारूं ।
हर सांस पूछती है,
कब आरती उतारूं ।
चुन चुन के पुष्प सुरभित,
लाई हूं वाटिका से ।
बरसों से प्रतीक्षा में,
व्याकुल हैं नैन प्यासे ।
मिल जायेंगे दरस तो,
पा जाऊंगी खज़ाना ।
हे राम… जल्दी आना !
हे राम… जल्दी आना !!
– शेखर “अस्तित्व”