मुन्नी का पौधा, कहानी संग्रह : सुधा वर्मा

वरिष्ठ लेखिका श्रीमती सुधा वर्मा लंबे समय से साहित्य से जुड़ी हुई हैं। उनका कार्य मुख्यतः छत्तीसगढ़ी साहित्य,लोक साहित्य एवं साक्षरता रहा है। इस क्षेत्र से सम्बंधित उनकीं कई किताबें हैं। वे देशबंधु अखबार में छत्तीसगढ़ी परिशिष्ट का सम्पादन भी करती हैं।इन सब के अलावा वे हिंदी भी लेखन करती रही हैं। ‘मुन्नी का पौधा’ उनके द्वारा समय-समय पर लिखे गए 59 कहानियों का संग्रह है।
अपने कलेवर में इन कहानियों को लघुकथा कहना अधिक सही लगता है क्योंकि अधिकांशतः आकार और प्रवृत्ति में लघुकथा के करीब हैं।
लेखिका लोक जीवन से जुड़ी रही हैं, इसलिए इन कहानियों में मुख्यतः लोकजीवन की झांकी, उसका द्वंद्व,अच्छाई-बुराई कई रूपों में प्रकट हुई हैं।कई कहानियों में ग्रामीण जीवन की सरलता, संकट में आपसी सहयोग दिखाया गया है।बहुधा कोई अकेला व्यक्ति किसी काम का बीड़ा उठाता है फिर लोग उससे जुड़ते चले जाते है;जैसे ‘ऊंची डगर की ओर’ में डेरहा के कार्य सबको प्रेरित करता है।
कई कहानियों में स्त्रियों, बच्चियों के यौन शोषण का मार्मिक चित्रण है। घरेलू समस्याओं, त्रासदियों अथवा उम्र के कच्चेपन के कारण अक्सर लड़कियों को ऐसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इससे कई बार जिंदगी तबाह हो जाती है।बहुधा ये शोषक हमारे आस-पास और कभी-कभी तो परिवार से भी होते हैं।’चित्रा का प्यार’, ‘रेवती का सुख’,’नासमझ मातृत्व’ जैसी कहानियों में यह देखा जा सकता है। विडम्बना यह की इसकी कीमत केवल स्त्री को चुकानी पड़ती है।
संग्रह की अधिकांश कहानियां स्त्री जीवन से जुड़ी हुई हैं। कुछ कहानियों में सौतेली मां द्वारा बच्चों की उपेक्षा, तो कहीं मातृत्व और हृदय परिवर्तन भी है। कई कहानियों में बुजुर्गों के अकेलेपन को उकेरा गया है। आज यह समस्या बढ़ती जा रही है कि बच्चे पढ़-लिख कर नौकरी के लिए बाहर चले जाते हैं,और माता-पिता को लगभग भूल जाते हैं। ऐसे में बच्चों और दादा-दादी के लगाव के मार्मिक चित्र भी उभर आते हैं।
लेखिका ने स्त्री जीवन को भी आलोचनात्मक निगाह से देखा है, और उसके मनोविज्ञान को रेखांकित किया है।यहां परस्पर प्रेम है तो ईर्ष्या भी है।’लावारिस’कहानी की रश्मि की विडम्बना का कारण वह स्वयं है।’एक शाम’ कहानी में भी लड़की के ग़रीब होने के बावजूद मदद करने वालों की उपेक्षा करना उसके प्रति सम्वेदना नही जगाती।
कई कहानियों में श्रमिकों की ईमानदारी का चित्रण है। जैसे ‘रिक्शा वाला’, ‘ईमानदारी’ ‘प्रमाण पत्रों का पार्सल’ आदि में अलग-अलग ढंग से इसका चित्रण है।आधार लगभग वही जैसा दर्शाया जाता रहा है ;पैसे बैग आदि को लौटाना।
संग्रह के कई कहानियों में गांव के शहर में बदलते जाने के प्रक्रिया और प्रभावों को दिखाया गया है।रायपुर को ही लेकर एक-दो जगह इन बदलावों को दिखाया गया है। ‘प्रतीक्षा’ में नये-नये कालोनियों के बसते चले जाने से नहर का विलुप्त हो जाना और उससे उपजे जल संकट का चित्रण है।’गिरते सिक्के’ में भिलाई स्पात संयंत्र के लिए गांवों के उजड़ने और नया गांव बसने के माध्यम से मार्मिक सम्वेदना व्यक्त किया है। लोगों ने देश के विकास में योगदान के लिए ज़मीन दी; नयी जगह जिंदगी शुरू की मगर पुरानी जगह और जीवन से संवेदनात्मक जुड़ाव सहज रहता है।’बोहार के वृक्ष’ में विकास के लिए जंगलो का उजड़ते जाने की विडम्बना को एक पेड़ के माध्यम से दिखाया गया है। बोहार केवल एक पेड़ नही, रोजगार का साधन भी है; एक संस्कृति का प्रतीक भी है।
कई कहानियों में पशु-पक्षियों के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण से लेकर आपसी साहचर्य और शिक्षाप्रद बातें कहीं गई हैं। कई कहानियां बच्चों को ध्यान में रखकर लिखी गई प्रतीत होती हैं।कहानियों का भूगोल मुख्यतः छतीसगढ़ और जसकी संस्कृति है।
इस तरह संग्रह के 59 कहानियों में सभी पर बात करना न सम्भव है न उचित; पाठक स्वयं उसका आस्वाद करें। इतना कहा जा सकता है कि इसमे लेखिका ने अपने परिवेश के आस-पास के चरित्रों के माध्यम से, हमारी आस-पास की दुनिया और समाज की बातें कही हैं। इनमें फूल भी हैं और कांटे भी। लेखिका की दृष्टि मुख्यतः स्त्री की समस्याओं, बच्चों की समस्याओं, बुजुर्गों की समस्याओं यानी पारिवारिक जीवन तथा पर्यावरण,लोक जीवन की परस्पर सहयोग,समस्याएं,नगरीकरण की समस्या जैसी कई पहलुओं को छुआ है।
कथाकार के कहन का ढंग लोक कथा शैली सी है। इसके अपने फायदे हैं।बातें सहजता से पाठक तक पहुँच जाती हैं। मगर इन कहानियों से गुजरते हुए इस बात का भी अहसास होता है कि कई जगह कथातत्व का यथोचित विकास नही हुआ है।कथाकार के पास कहानी का प्लाट तो है मगर उसे कथारूप देने में अपेक्षित सफलता नही मिली है।कहीं-कहीं तीन पीढ़ी की कहानी दो-तीन पृष्ठों में समेटने का प्रयास है। दूसरी बात कुछ कहानियां सम्वेदना की दृष्टि से बाल कहानियां प्रतीत होती हैं, मगर उनका पृथक्करण नही किया गया है।
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[2020]
कृति- मुन्नी का पौधा (कहानी संग्रह)
रचनाकार- श्रीमती सुधा वर्मा
प्रकाशक-वैभव प्रकाशन
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# अजय चन्द्रवंशी, कवर्धा(छत्तीसगढ़)
मो. 9893728320