बीज पंडुम / अक्ति / अक्षय तृतीया

पिछले दसेक दिनों से हमारे इधर माटी के इन पुतरा पुतरी की धज सड़क किनारे देखता आ रहा हूँ। रंग बिरंगे, घिबली आर्ट जैसी मासूमियत मुखड़े वाले ये जोड़े मन में एक साथ अमलतास और गुलमोहर खनका देते हैं, करंज के मोती जैसे फूल मन आंगन में बगरा देते हैं। हिंदी लोक इसे विवाह का सबसे शुभ लग्न मानता है पर यह बात विवाह तक ही नहीं है बल्कि बहुत आगे है।
मनुष्य की सभ्यता आदिम युग से विभिन्न पड़ावों को पार करते यहां तक पहुंची है। अतीत में मनुष्य की हर क्रिया प्रकृति सम्मत रही है। इसका श्रेष्ठ उदाहरण आदिवासी समुदाय, खासतौर से बस्तरिया कोयतोर (गोंड) समूह की परम्पराओं में हम आज भी देख सकते हैं। आज बस्तर में अखा तीज है मतलब बीज पंडुम (त्योहार)। आज से नए सत्र के कृषि कार्य का प्रथम दिवस है। मध्य छत्तीसगढ़ में आज ही लोक देवता की उपस्थिति में विधि विधान पूर्वक नए ‘पोक्खा’ बीजों को फसल के लिए छाँट लिया जाता है और ‘बोदरा’ बीजों को अलगा लिया जाता है। इसी प्रक्रिया का पुरखा है बस्तर का बीज पंडुम। आम की कैरियों को चने के बराबर फला देखकर ललचानेवाले आधुनिक समाज को यह जानकर आश्चर्य होगा कि बस्तर की संस्कृति में आम आज के बाद खाया जाएगा। इसके पहले कोई बच्चा भी आमों पर खानेवाली नजर नहीं डालता!
आम में चेर धरें, वह परिपक्व को, तब उसे खाने का संस्कार मनुष्य होने का उत्तम आदर्श है। खेती या अन्य खाद्य वनस्पतियों के बीजों का चयन करना खेती मात्र नहीं है बल्कि उस वनस्पति की संतति को आगे लेकर जाने का उदिम है। यही भाव मनुष्य पर लागू होता है और इसीलिए मनुष्य की संतति के लिए परिपक्व वर – वधु का चयन कर उनका बिहाव आज अक्ति के दिन करना इसी लिए उत्तम माना गया है। यह है प्रकृति सम्मत परंपरा।
गांवों में बच्चे इन पुतरा पुतरी का बिहाव करते हैं और सामाजिक संस्कार की शिक्षा लेते हैं। यह उसी तरह है जैसे पोरा तिहार में बच्चे खेती और भोजन बनाने की प्रक्रिया को सीखते हैं। न जाने किसने इसे बाल विवाह से कभी जोड़ दिया था जबकि इसके मूल में ऐसा है ही नहीं। अभी इधर कुछ सालों से हर अक्ति को इन पुतरा पुतरी का एक जोड़ा लेता हूँ और कभी रुचिसम्पन्न नवदम्पति को उनके बिहाव में उपहार में भी देता हूँ। लगता है, इन माटी की मूरतों से अच्छा क्या ही होगा उपहार क्योंकि लाखों के दहेज और विलासिता की कृत्रिम चीजों वाली शादियों का हश्र तो देख ही रहे हैं।
अक्ति पर बधाई और शुभकामनाएं। जीवन मे जो भी पोक्खा (सकारात्मक) है, उसे रख लें और जो भी ‘बोदरा’ (नकारात्मक) है, उसे अलगा दें।
आप सभी को प्रकृति जोहार! हरियर सलाम ! 🌿. पीयूष कुमार