राजेन्द्र राजन के दो गीत
2)
केवल दो गीत लिखे मैंने।
इक गीत तुम्हारे मिलने का
इक गीत तुम्हारे खोने का।
सड़कों-सड़कों, शहरों-शहरों
नदियों-नदियों, लहरों-लहरों
विश्वास किए जो टूट गए
कितने ही साथी छूट गए
पर्वत रोए-सागर रोए
नयनों ने भी मोती खोए
सौगन्ध गुँथी सी अलकों में
गंगा-जमुना-सी पलकों में ।
केवल दो स्वप्न बुने मैंने
इक स्वप्न तुम्हारे जगने का
इक स्वप्न तुम्हारे सोने का
बचपन-बचपन, यौवन-यौवन
बन्धन-बन्धन, क्रन्दन-क्रन्दन
नीला अम्बर, श्यामल मेघा
किसने धरती का मन देखा
सबकी अपनी है मजबूरी
चाहत के भाग्य लिखी दूरी।
मरुथल-मरुथल, जीवन-जीवन
पतझर-पतझर, सावन-सावन
केवल दो रंग चुने मैंने
इक रंग तुम्हारे हंसने का
इक रंग तुम्हारे रोने का ।
केवल दो गीत लिखे मैंने
इक गीत तुम्हारे मिलने का
इक गीत तुम्हारे खोने का
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3)
यह कौन-सी अयोध्या है।
अयोध्या का यही अर्थ हम जानते थे
जहाँ न हो युद्ध
हो शान्ति का राज्य
अयोध्या की यही नीति हम जानते थे
जहाँ सबल और निर्बल
बिना भय के
पानी पीते हों एक ही घाट
अयोध्या की यही रीति हम जानते थे
जहाँ प्राण देकर भी
सदा निभाया जाए
दिया गया वचन
यह था अयोध्या का चरित्र
गद्दी का त्याग और वनवास
गद्दी के लिए ख़ूनी खेल नहीं
अयोध्या का मतलब
गृहयुद्ध का उन्माद नहीं
घृणा के नारे नहीं
अयोध्या का मतलब कोई इमारत नहीं
दीवारों पर लिखी इबारत नहीं
अयोध्या का मतलब छल नहीं, विश्वासघात नहीं
भय नहीं रक्तपात नहीं
अयोध्या का मतलब
हमारी सबसे मूल्यवान विरासत
अयोध्या का मतलब
मनुष्य की सबसे गहरी इबादत
अयोध्या का मतलब
हमारे आदर्श , हमारे सपने
हमारे पावन मूल्य
हमारे हृदय का आलोक
अयोध्या का मतलब न्याय और मर्यादा और विवेक
अयोध्या का मतलब कोई चौहद्दी नहीं
अयोध्या का मतलब सबसे ऊँचा लक्ष्य
जहाँ दैहिक, दैविक, भौतिक सन्ताप नहीं
यह कौन-सी अयोध्या है
जहाँ बची नहीं कोई मर्यादा
यह कौन-सी अयोध्या है
जहाँ टूट रहा है देश
यह कौन-सी अयोध्या है
जहाँ से फैल रहा है सब ओर
अमंगल का क्लेश
यह कौन-सी अयोध्या है
जहाँ सब पूछते नहीं
एक-दूसरे का हाल-चाल
पूछते हैं केवल अयोध्या का भविष्य