अपने अपने नियम
कहते हैं
आजादी अधिकार है सबका
लेकिन इसका प्रयोग करना
कहाँ जानते हैं सब?
जैसे आदत होती है
कुछ पशुओं की
संध्या होते ही खूंटे के नजदीक
जाकर मान लेते हैं
कि वो बंधे हैं।
जैसे आदत होती है
कई व्यक्तियों की
वो मान लेते हैं
उन पर हक़ है किसी का।
और स्वेच्छा से दे देते हैं
अपने जीवन की डोर किसी अन्य के हाथों में।
दुनिया में कुछ लोग स्वछन्द जन्म लेते हैं
उन्हें बाँधा नहीं जा सकता;
और कुछ जन्म लेते ही है
पद दलित होने के लिये;
आप उन्हें स्वतन्त्रता का महत्त्व
समझा नहीं सकते,
क्योंकि उनके लिए ये शब्द मात्र हैं।
उन्हें तो चाहिए बस
भर पेट रोटी, वस्त्र और छ्त,
जिसके लिए स्वीकार करते हैं वो,
गुलामी जीवन भर की स्वेच्छा से।
ये दोनों प्रकार के प्राणी अक्सर
अचरज से देखते हैं एक दूसरे को,
और जीते चलें जाते हैं
अपना- अपना जीवन
अपने अपने नियम पर।
©मेधा झा
31.07.2021