एक टूटी हुई छत…
पल्लवी मुखर्जी
एक टूटी हुई छत
टूटी हुई चारपाई
टूटा हुआ छाता
कोने में पड़ी
जंग लगी साईकिल
मिट्टी का चूल्हा
भीगी हुई लकड़ी
और
इसके अलावा
दिप-दिप करती हुई
ढिबरी की लौ
लौ
उम्मीद जगाती है
उसके भीतर
कहीं किसी कोने में
जलता है अलाव
कि वह
बदल देगा
छत
छाता
चारपाई
और
जंग लगे
साईकिल की किस्मत
किंतु
साल दर साल
ढिबरी के मद्धिम होते लौ मे
देखती है वह
उसके चेहरे की
फीकी होती रंगत
देखती है वह
ढोते हुए
निरंतर एक बोझ
जैसे साईकिल नहीं
उसकी देह हो