November 18, 2024

बड़ा ही अटपटा था मित्र अत्याचार हो जाना…

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बड़ा ही अटपटा था मित्र अत्याचार हो जाना।
सभा थी राम की लेकिन सिया पर वार हो जाना।

खड़े थे हाथ बांधे जानकी के जानने वाले।
बड़ा हैरान करता है जनक का खार हो जाना।

लिए थे अग्नि के फेरे किये वादे बड़े गहरे।
भुला के आज वरमाला प्रजा का हार हो जाना।

परीक्षा मांगना ही राम तेरी प्रीत कहता है।
बड़ा जायज लगा उस पल सिया खुद्दार हो जाना।

भरी ललकार माता ने धरा को चीर के बोली।
सिया देती परीक्षा मां तुम्ही आधार हो जाना।

खड़ा है मौन हर वो सख्स भरता न्याय का जो दम।
दिखाता आईना सबको सिया का पार हो जाना।

चली है जोड़ हाथों को कहे हे राम सुन लेना।
नहीं आसान इस जग में सुता उद्धार हो जाना।
✍🏿 श्रद्धान्जलि शुक्ला”अंजन “

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