बदलते समय में स्त्री के संघर्ष की कहानियां – असगर वजाहत
रायपुर। छत्तीसगढ़ मित्र और वैभव प्रकाशन रायपुर द्वारा आज कहानीकार रीता दास राम के कहानी संग्रह समय जो रूकता नहीं है, पर वेब समीक्षा संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी के मुख्य अतिथि देश के सुप्रसिद्ध कथाकार श्री असगर वजाहत ने कहा कि ये कहानियां हमारे समय के बदलाव की कहानियां हैं जो जीवन में घट रहा है वही कहानियों में दिखाई देता है।
प्रारंभ में अतिथियों का परिचय डॉ सुधीर शर्मा ने दिया और लेखिका ने स्वागत किया। पहले समीक्षक के रूप में वरिष्ठ साहित्यकार श्री गिरीश पंकज ने इस कहानी संग्रह पर चर्चा करते हुए कहा कि कहानीकार समाज में संघर्ष करती कमजोर स्त्री को प्रतिरोध के लिए ताकत देती है। एक समर्थ स्त्री दूसरी स्त्री को संबल देती है। इन कहानियों में प्रवाह है। हमारे सामाजिक मूल्यों और द्वंद्व को बहुत गंभीरता से प्रस्तुत करती है।
लघुकथाकार श्री महेश राजा ने प्रतिक्रिया व्यक्त की और कहा कि रीता दास राम की कहानियां स्त्री के मनोविज्ञान को अनुभूत करती हैं। विश्व मैत्री मंच के संयोजक श्रीमती संतोष श्रीवास्तव ने कहा कि रीता एक चर्चित कवयित्री हैं और अब यह दस कहानियों का संग्रह उन्हें कहानीकार के रूप में भी स्थापित करती हैं। स्त्री की अस्मिता को इन कहानियों में बल मिलता है। अपने अस्तित्व की तलाश करती स्त्रियां इन कहानियों की नायिका हैं। लिव इन रिलेशनशिप और समलैंगिकता जैसी स्थितियों को कहानियों में उकेरा गया है। पुरुष इन कहानियों में कटघरे में खड़ा दिखाई देता है। आभासी दुनिया और लाकडाऊन के किस्से भी हैं। रीता की कहानियां सृजन की आंतरिकता लिए हुए है। सभी शीर्षक वाक्यांश लगते हैं जो कहानी को पढ़ने के लिए आकर्षित करते हैं।
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के प्राध्यापक और वरिष्ठ गीतकार श्री वशिष्ठ अनूप ने कहा कि इन कहानियों में पाठक भीतर गहरे में प्रवेश करता चलता है। एक अच्छी रचना हमें डूबने का अवसर देती है। इस संग्रह की सबसे अच्छी कहानी संदूक में पड़ा रिश्ता है। इसमें खूबसूरत एहसास है। कोरोना को लेकर भी एक अच्छी कहानी इस संग्रह में है। मनुष्य को अपनी विविधता और संपूर्णता का एहसास कोरोना काल में हुआ। हमारे समय के तमाम चेहरे इस कहानी में है।
वरिष्ठ कथाकार और वेब समीक्षा गोष्ठी के मुख्य अतिथि श्री असगर वजाहत ने कहा कि यह कहानी संग्रह अपने समय का मूल्यांकन करती है। एक कवि का कहानीकार हो जाना रचनाप्रक्रिया को प्रभावित करता है। कहानियों में वैचारिक संकेत है जो समय के बदलाव को चित्रित करते हैं। रचनाकार की पहुंच समाज को देखने के मामले में आम आदमी से गहरी होती है। रचना में कुछ असंभव नहीं है। स्त्री मुक्ति का स्वर इस संग्रह में प्रधान है।
लेखिका रीतादास राम ने अंत में कहा कि मेरी कहानियां मात्र कल्पना नहीं है, वह जीवन की छूकर आत्म चिंतन करती हुई हैं। मुझे इन कहानियों की प्रेरणा आसपास की घटनाएं हैं। लमही में पहली कहानी प्रकाशित हुई। इस समीक्षा से मुझे अनेक सुझाव भी मिले हैं। बहुधा स्त्रियां समाज और परिवार में रीति-रिवाजों और व्यवस्था की शिकार हो रही हैं। समूची दुनिया में उम्मीद केवल स्त्रियों से की जाती है जो अनुचित है परंतु दुनिया में हो रहे बदलावों में स्त्रियों भी बराबर का हक रखती हैं और वे भी बदल रही हैं।
संचालन और संयोजन डॉ सुधीर शर्मा ने किया।