जनवरी की ठंड में स्वेटर सी रचनाये
अलविदा दोस्त कवि नरेश दुबे
पुस्तक समीक्षा
पुस्तक – #जैसी दिखती है वैसी नहीं है ज़िन्दगी_
शायर – नरेश दुबे नवनीत
प्रकाशक – देव प्रकाशन , रायपुर
कविता के शरीर में विचार का वही स्थान है जो मानव के शरीर में मांस का है , जिस तरह शरीर में से हड्डी को नहीं निकाला जा सकता उसी तरह कविता में से चिंतन को नहीं निकाला जा सकता | कविता और शायरी का साहित्य में वही स्थान है जो स्थान शरीर में मस्तिष्क का है | मौजूदा समय में शायरी का मिज़ाज पूरी तरह बदल चुका है | आज की गज़ल इश्क मोहब्बत और शराब शबाब के घेरे से निकल कर सामजिक मसलो , सियासती घपलो , मज़हबी फसादात और आर्थिक दिक्कतों का खाका खीच रही है | अब शायरी शायर के मन की मस्ती नहीं रही , यह उसकी सामजिक ज़िम्मेदारी हो गई , अब शायरी मिशन हो गई है | अब शायर शायरी के माध्यम से खराबी , कुरीति , हिंसा , अंधविश्वास से टकरा जाने का माद्दा रखता है |
ऐसी ही शायरी का एक संग्रह साहित्य की दुनिया में आया है जिसका नाम है ” जैसी दिखती है – वैसी नहीं है जिंदगी”… यह छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ कवि एवं गीतकार श्री नरेश दुबे नवनीत की गज़लो और अशआरो का संग्रह है | नरेश दुबे लगभग चालीस वर्षो से निरंतर सृजन कर रहे है , चालीस वर्षो की निरंतर लेखन यात्रा में यह उनका दूसरा संग्रह है जो पाठको के हाथ में आया है और हम यहाँ उसकी चर्चा कर रहे है | शायर का ग़ज़ल संग्रह चालीस सालो में आ रहा है लेकिन शायर तो वह चालीस साल पहले भी था , बस हमने उस तक पहुचने में चालीस वर्ष लगा दिए |
नरेश दुबे की शायरी क्या है ? अगर महादेवी वर्मा के शब्दों का इस्तेमाल करू तो यह संग्रह ” चिंगारियों का मेला” है | हर रचना सोच की उंचाई है , सोच की उंचाई ही रचना की उंचाई होती है | दुष्टों की पहचान कराती गज़ले पाठको को राह भी दिखाती है | नरेश दुबे की गज़ले हमारे मन को सिर्फ सुकून नहीं देती बल्कि कही कही अच्छा ख़ासा कोलाहल भी मचा देती है – ज़रा उनके अंदाज़ की बानगी देखिये –
मंज़िल चलने वाले की है , यह सच मन में बसने दो
चाहे कितनी राह कठिन हो , अपने पाँव न थमने दो |
प्रेम नदी पर बाँध बनाकर इस अमृत को विष न करो
सारे पाप धुलेगे इसको कल कल करती बहने दो |
रात के बस कुछ और प्रहर है फिर तो सूरज निकलेगा
तब तक अपने अपने दीपक जलने दो बस जलने दो |
रचना में विचार ठूसे जैसे नहीं है , बल्कि ग़ज़ल में इन्हें कलात्मक तरीके से रवानगी के साथ पिरोया गया है | यह तरल पदार्थ सा लगने वाला यह ठोस विचारों से लबालब भरा संग्रह है | हम जैसे जैसे संग्रह के पृष्ठ दर पृष्ठ ( पढ़ते हुए ) बढ़ते जाते है तब हमें अहसास होता है कि इसका हर शेर उलझन की सुलझन है , कुछ अशआर देखिये –
एक
मज़ारो-मंदिरों की भीड़ में खोने से अच्छा है
किसी मासूम की टूटी हुई हिम्मत बँधाए हम ||
दो
पाँव के छालो से,तन के टूटने से हार मत
दर्द से हंसकर गुज़रने की कला है ज़िन्दगी ||
तीन
कतर के पर परिंदों के ,उन्हें कर देते है बेबस
परिंदों को कहाँ सय्याद अब पिंजरे में रखते है ||
चार
गिरेबाँ अपना तो झांको किसी पर दोष फिर मढ़ना
वतन खुशहाल रखने में दिया सहयोग क्या हमने ??
नरेश दुबे का लेखन निःसंदेह जीवन को अशुद्धि से शुद्धि की ओर ले जाने वाला लेखन है | यह आव्हान करती रचनाये , पुकारती हुई रचनाये , आवाज़ देती रचनाये हमारी बुद्धि की मरम्मत करती है , हमारी सोच की सर्विसिंग करती है | मौजूदा हालात में आवाम उम्मीद भरी नज़रों से शायर की तरफ़ देख रही है कि आप अपनी शायरी से हमे राह दिखाइये |
नरेश दुबे का शायरी में बात करने का जो लहजा है वह जितना प्रभावशाली है उतना ही सहज और सरल भी है | कवि की समूची शायरी कुछ चुनिंदा शब्दों से ही व्यक्त होती है , और वह भी दैनिक बोल चाल में कहे जाने वाले शब्द , लेकिन वही शब्द बार बार इस्तेमाल तो होते है लेकिन हर बार कविता में शामिल होने के बाद अपना अर्थ बदल देते है | शब्द हर बार पहले से ज़्यादा पवित्र , ज़्यादा प्रहारक , ज़्यादा नुकीले और ज़्यादा धारदार बन कर रचना में शामिल होते है | यह एक ऐसा संग्रह है जिसे आप पढने के लिए इसके अंत से भी आरंभ कर सकते है , यह दोनों तरफ से जलने वाली टार्च है | नाज़ुक से कवि की ये बलशाली रचनाये कैल्शियम और आयरन से भरपूर हिष्ट पुष्ट रचनाये है |
देव प्रकाशन रायपुर से प्रकाशित १२६ पृष्ठ के इस संग्रह का मुख पृष्ठ पंकज शर्मा ने तैयार किया है | चिकने सफ़ेद कागज़ पर साफ़ सुधरी , त्रुटिहीन छपाई स्वयं इसे पढने के लिए आमंत्रित करती है , बस संग्रह निगाह में आना भर चाहिये |
अखतर अली
मेडी हास्पिटल के पास , आमानाका ,
रायपुर (छ.ग.)
मो.न. 9826126781