बदलाव नहीं प्रेम जरूरी है
मैं 19 बरस का था, जब मेहरुनिमा से मेरी शादी हुई और वह 17 बरस की थीं। जैसे-जैसे मैं बड़ा हुआ, औपनिवेशिक भारत के ब्रिटिश कल्चर से प्रभावित होता चला गया। मैंने धाराप्रवाह इंग्लिश बोलना सीख लिया, ग्रेसफुली सूट पहनना सीख लिया, संभ्रात लोगों वाले एटिकेट्स भी सीख लिए। लेकिन मेहरुनिमा मुझसे बिल्कुल उलट थी। वो एक टिपिकल हाउसवाइफ थी। मेरी सलाह और चेतावनी से उनके मूल व्यक्तित्व में कोई बदलाव नहीं आया। वह एक आज्ञाकारी पत्नी, प्यार देने वाली मां और एक कुशल गृहणी थीं। लेकिन जो मैं चाहता था, वह वो नहीं थीं। जितना मैं उन्हें बदलना चाहता था, उतने ही हम दोनों के बीच फासले बढ़ते गए। धीरे-धीरे वह एक प्यारी सी युवा महिला से असुरक्षित महिला में तब्दील हो गईं। इसी दौरान मैं अपनी एक को-एक्टर की तरफ आकर्षित हो गया और उनमें वह सबकुछ था, जो मैं अपनी पत्नी में चाहता था। शादी के 10 साल बाद मैंने मेहरुनिमा को तलाक दे दिया, घर छोड़ दिया और अपनी को-एक्टर से शादी कर ली। मैंने मेहरुनिमा और अपने बच्चों की फाइनेंशियल सिक्योरिटी सुनिश्चित कर दी थी। 6-7 महीनों तक सबकुछ ठीक-ठाक चलता रहा। इसके बाद मुझे अहसास हुआ कि मेरी पत्नी केयरिंग और अफेक्शनेट नहीं है। वह सिर्फ अपनी खूबसूरती, महत्वाकांक्षा, अपनी इच्छाओं के बारे में सोचती है। कभी-कभी मैं मेहरुनिमा के प्यार भरे स्पर्श और मेरे लिए फिक्र को मिस करता हूं। जिंदगी बीतती गई। मैं और मेरी पत्नी हम दोनों एक घर में रहने वाले दो लोग बन गए, हम एक नहीं हो पाए। मैं कभी ये देखने नहीं गया कि मेहरुनिमा और मेरे बच्चों का क्या हुआ। दूसरी शादी के 6-7 साल बाद मैं मधुर जाफरी का एक आर्टिकल पढ़ रहा था, जो एक उभरती हुई शेफ थीं, जिन्होंने हाल ही में अपनी रेसिपीज की एक किताब लॉन्च की थी। जैसे ही मैंने उस स्मार्ट और एलीगेंट महिला की तस्वीर देखी, मैं दंग रह गया। वह मेहरुनिमा थीं। ऐसा कैसे मुमकिन था? उन्होंने दोबारा शादी कर ली थी और अपना मेडन नेम भी बदल लिया था। उस समय में मैं विदेश में फिल्म की शूटिंग कर रहा था। वह अब अमेरिका रहती थीं। मैं अगली फ्लाइट से अमेरिका पहुंचा। मैंने मेहरुनिमा के बारे में पता किया और उनसे मिलने गया। उन्होंने मुझसे मिलने से इनकार कर दिया। मेरी बेटी 14 साल की थी और बेटा 12 साल का। उन दोनों ने कहा कि वे आखिरी बार मुझसे बात करना चाहते हैं। मेहरुनिमा के नए पति उनके ना मिलने के फैसले में उनके साथ थे। मेरे बच्चों के भी वह कानूनी पिता थे। आज की तारीख में भी मैं भूल नहीं पाता कि मेरे बच्चों ने मुझसे क्या कहा था। उन्होंने मुझसे कहा कि हमारे नए पिता को पता है कि असली प्रेम क्या होता है। बच्चों ने बताया कि मेहरुनिमा को उनके दूसरे पति ने कभी बदलने की कोशिश नहीं की क्योंकि वह खुद से ज्यादा अपनी पत्नी को प्यार करते थे। उन्होंने मेहरुनिमा को अपनी तरह से विकसित होने के लिए स्पेस दिया। मेहरुनमा जैसी थी, उन्होंने उन्हें वैसे ही स्वीकार किया, कभी उन पर अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए दबाव नहीं बनाया। और अपने दूसरे पति के साथ आज वह कॉन्फिडेंस से भरी प्यार देने वाली आत्मनिर्भर महिला के रूप में तब्दील हो चुकी हैं। यह उनके दूसरे पति का निस्वार्थ प्रेम और स्वीकार्यता थी, जिससे यह संभव हुआ। जबकि आपकी स्वार्थपरिता, डिमांड और मां को उनके मूल रूप में ना स्वीकार करने से ही वह आत्मविश्वास से हीन हुईं और आपने अपनी स्वार्थपरिता में उन्हें छोड़ दिया। आपने कभी मां को प्यार नहीं दिया, आपने हमेशा खुद को प्यार किया और जो खुद से प्यार करते हैं, वे कभी किसी और को प्यार नहीं दे सकते। मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा सबक था-आप जिन्हें प्यार करते हैं, उन्हें बदलने की कोशिश नहीं करते, वो जैसे हैं, उन्हें वैसे ही प्यार करते हैं।’
विख्यात कलाकार सईद जाफरी जी की डायरी का एक अंश