पंचतत्व : अग्नि
क्रोधित प्रकृति का भयावह प्रलय
जीवन संघर्ष
प्रतिशोध की अग्नि
मनुजता का कलंक बन
भम्मी भूत कर राख बनाने आतुर
समीरण संग दूत की तरह
लगाती है मन में ,
घरों मे आग।
धू धू उठती लपटें
वायु संग रचाती साजिश,
समेटती बाहों में,
तब
मनुज भूल जाता विद्वेष,
जाग जाती मनुजता,
प्राणों की रक्षा हेतु
भागते लोग,
हाथ पकड़
करते हैं चेष्टा,
बचाव
ढूंढते हैं ठाँव।
क्रोध से धधकती अग्नि
तोड़ती धारणा,
गहती है हाथ,
जगाती है
करुणा प्रेम मानवता,
बहुत खूब,
अग्नि का यह संस्कार
मनुजता का आधार ।
डाॅ मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़