आज की शाम की सौग़ात
हाथ में हाथ हो और तुम साथ हो
ख़ुशनुमा हो सुबह ख़ुशनुमा रात हो
जुगनुओं की चमक से चमकती हुई
कंगनों की खनक से खनकती हुई
चांद से मदभरी चांदनी जब छने
मेरे आंचल में ऐसी वो बरसात हो
मन की सारी तरंगों को सुन लेना तुम
अपने सपनों का इक नीड़ बुन लेना तुम
बिन कहे जानना,बिन कहे मानना
चुप रहें हम मगर बात ही बात हो
प्रेम को चाहिए एक निश्छल हृदय
प्रीत का तब सरलता से होता उदय
प्रेम को हम नहीं प्रेम चुनता हमें
तुम हमारी वही नेह सौग़ात हो
-पूजा मिश्रा यक्ष