विदाई और स्वागत
ढलती शाम और डूबता सूरज..
रात्रि के दरवाजे पर
आखिरी दस्तक दे..रहे हैं।
सूर्य का ताप.. जैसे.. अंँधेरी रात ने
लील लिया हो।
हर लिया हो
बीते साल की बाधाओं ने
जैसे..सारा तेज.. ।
लबालब भरी सजल आंँखें..
तकती हैं..
बीते साल डूबे ..
सभी सितारों को आसमान में।
अनमना सा सूर्य
साल के
अन्तिम क्षणों में
बेहद निस्तेज हो चला है..
जैसे साल भर .. खर्च करते करते ऊर्जा भंडार अब समाप्ति पर हो।
आज की रात्रि एक गहरी नींद लेकर..
फिर से ऊर्जा संजोना चाहता है सूर्य..
ताकि नव वर्ष में फिर से ऊर्जावान होकर अपने ताप से रक्षक बन सके प्रकृति का ..हम सभी का।
भारी मन से रात्रि..
विदा दे…
बर्फ की चादर ओढ़ती जा रही है।
पहाड़ों की गोद में नदियांँ. .
बर्फ का लिहाफ ओढ़.. शांत हो..सो रही हैं।
मछलियों ने भी समाधि..
ले ली है बर्फ में ।
रात्रि ने मनन करने के लिए..
चांँद से एकांत उधार लिया है।
चांँद और बर्फ दोनों सिनेमा घर के चित्रपट से हो गए है..
बीते वर्ष के..
चलचित्र चल रहे हैं।
संवेदनाएं समुद्र की तरह.. किनारों पर थपेड़ों की तरह ..
आकर चौंका रही हैं।
अब विदा लो बीते वर्ष!
नववर्ष के स्वागत मैं..
पलक पांँवड़े बिछाने हैं..
और इस वर्ष..
रूठने नहीं देना है अपनों को..।
इंतजार है उस सूर्य का
जोअपनी ऊर्जा से
प्रकृति और हम सभी में ऊर्जा भर दे।
इंतजार है.
नववर्ष के उस सवेरे का
जो मुस्कराहट के साथ गुनगुनी, गुलाबी धूप लेकर आएगा..
और अपने तेज से
हम सभी को उत्साह से
लबरेज़ कर देगा।
तो आओ नववर्ष..!
हर्षोल्लास के साथ
स्वागत है..
स्वागत है।
निमिषा सिंघल
(आगरा उत्तर प्रदेश)