अपने ही दर्द कम थे क्या …
अपने ही दर्द कम थे क्या
जो पराये भी बाँट लिए?
सबसे बेरहम दर्द
खुद के लिए छाँट लिए!
बनकर पथिक वो दिशा चुनी
जहाँ राह तो राह
पगडण्डी भी नहीं मिली,
पर सघन वन ने
जब मेरा हाथ थामा
कैसी सुनहरी धूप खिली!
खुद ओढ़ा सारे दर्दों का जामा
भारी पत्थर धकेल कर इधर उधर
पहले पगडण्डी फिर राह बनाई
रही नहीं फिर तनहाई,
दर्दों को मिले कवच
नहीं रही फिर मैं अवश!
©निर्मला सिंह
My first encaustic work.. sold from my first solo show 1999, museum art gallery Chandigarh.