कविता – भूल ही तो है
**जब आदमी खुद को बेताज बादशाह समझे
आप कुछ भी बयां करें,भूल ही तो है*।
**सुनना नहीं चाहता जमीं से क्षितिज पार तक
जैसे कहा नहीं था कभी, भूल ही तो है*।
**रास्ते चौराहों पे दादा किस्म नौजवान का डेरा
पुलिस जवान फेरा करेंगे, भूल ही तो है*।
**छानी छप्पर मरम्मत से पहले सड़क पे चलिए
मवेशी ठीक से बैठे या नहीं, भूल ही तो है*।
**हम तो आम जनता शहर के वाशिंदे हैं साहब
यातायात सुविधा की मांग, भूल ही तो है*।
**सगे भाई, बेटा बेटी छात्र छात्रा काल कवलित
नियम पालन की सोच भी, भूल ही तो है*।
**जन जन का जनधन खाता धारी बैंक में डटा
डांट खाता रहे कोई गरीब, भूल ही तो है*।
**आंगनबाड़ी योजना लाभ पाए गर्भवती महिला
बिना परेशानी जांच होगी, भूल ही तो है*।
**आंगनबाड़ी डॉक्टर के निर्धारित समय लिखते
कटे पर्ची और लंबी प्रतीक्षा, भूल ही तो है*।
**गाथा समाज राजनीति दोगलेपन की खूब गाएं
अच्छों को कुछ लफ्ज़ मिलें, भूल ही तो है*।
**खुली आंख से उफनते बिगड़ते हालात देख रहे
खास बात नजर अंदाज हो, भूल ही तो है*।
**किसी न किसी कला में पारंगत इंसान है बनता
अन्य की प्रसिद्धि गान विजय, भूल ही तो है*।
(रचयिता : विजय गुप्ता दुर्ग छ ग, 02 अगस्त 22)