सावन को बरसते देखा है
खेतों में, खलियानों में,
सावन को बरसते देखा है ।
झर-झर झरती बूंदें मोती जैसी
पेडों के पत्तों पर चमकती चांदी जैसी
बीजों को पौधा बनते देखा है,
सावन को बरसते देखा है ।
धरती की भरती गोद
हंसों को नहाते देखा है,
सावन को बरसते देखा है ।
नदी-नाले, ताल -तलैया भरते उफान
सागर लेता हिलोर
आसमान में इंद्रधनुष बनते देखा है,
सावन को बरसते देखा है ।
गोरी की आंखों में मदिरा का नशा
मृदुल- मनोरम अमृत छलकाती बातें
काली नागिन सी चाल
सावन के प्यासे को तड़पते देखा है,
सावन को बरसते देखा है ।
मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
ग्राम रिहावली, डाक घर तारौली गुर्जर, फतेहाबाद, आगरा, उत्तर प्रदेश 283111