भजन और गज़ल के बीच तिरती है आवाज़
प्रभंजय चतुर्वेदी की
भिलाई की अनेक प्रतिभाओं की विकास यात्रा में एक समय ऐसा भी आया जब एक आयु वर्ग के मित्र समूह में से कई प्रतिभाएं एक साथ उभर कर सामने आयीं. इनमें प्रभंजय चतुर्वेदी, भालचंद शेगेकर, दुष्यंत हरमुख, सुप्रियो सेन, कौशल उपाध्याय, राजकुमार सोनी जैसे प्रतिभा संपन्न लोग थे. जो नाटक, संगीत और पत्रकारिता जैसे कई क्षेत्रों में अपने अपने दांव-पेंच आज़मा रहे थे. ये किनके शागिर्द थे और कौन इन जां-बाजों के उस्ताद थे यह जानने की कोशिश किसी ने नहीं की, पर ये सभी कलाकार आज अपने अपने क्षेत्रों में उस्तादी दिखाने की ओर बढ़ चले हैं. इनकी शौर्य पताकाओं को देखकर ऐसा लगता है कि इन सभी पुरुषार्थियों ने बचपन में शागिर्दगी की नहीं उस्तादी की घुट्टी ही पी होगी और आज ये सब यह कहने की हैसियत रखते हैं कि ‘हम सब उस्ताद हैं.’
इन सबके लीडर प्रभंजय चतुर्वेदी हैं, यानी उस्तादों के उस्ताद जिन्होंने सबसे ज्यादा दौलत और शोहरत हासिल कर ली है, बावजूद इसके वे जगजीत सिंह की आवाज में गा रहे हैं ‘ये दौलत भी ले लो ये शोहरत भी ले लो..’और वे आज भी अपने दोस्तों-महफ़िलों में उसी भलमनसाहत से काबिज हैं जिस तरह से हुआ करते थे. कुदरत से मिली कद-काठी में वे संगीत और गायकी के लिए बिलकुल फिट बैठते हैं. कुर्ता पहनकर और हारमोनियम लेकर जब ‘मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो’ का अलाप लगाते हैं तब हाल तालियों से गडगडा उठता है और प्रभंजय के घुंघराले बालों वाले गोल चेहरे पर मुस्कान उसी तरह खिल उठती है जैसे किसी पोखर में कमल खिल रहा हो.
संगीत में ‘बेचलर ऑफ म्यूजिक’ करने के बाद गायन के क्षेत्र में प्रभंजय ने देश-विदेश में कई कार्यक्रम किये और कितने ही मान सम्मान पाए. कैसिट एवं सी.डी. में रिकॉर्ड हुए. मैं उनसे भिलाई इस्पात संयंत्र के क्रीडा, सांस्कृतिक एवं नागरिक सुविधायें विभाग के दफ्तर में मिलता हूँ जहाँ वे वरिष्ठ कलाकार के पद पर कार्य करते हैं. अपनी कार्यक्षमता के बल पर वे केवल एक गायक ही नहीं कुशल कार्यक्रम संयोजक भी हैं. वे अपने मुख कमल से बोल उठते हैं – ‘आइये सर, सुनाइए.!’ जबकि सुनाना प्रभंजय को था मैं तो सुनने आया था.
यह पूछने पर कि ‘गायकी में आपकी सबसे बड़ी उपलब्धि क्या है?’ प्रभंजय तपाक से बोल उठते हैं कि ‘यही कि मेरी आवाज अनूप जलोटा जी से मिलती है.’ यह संयोग भी है कि सूरत-सीरत से भी अनूप जलोटा और प्रभंजय चतुर्वेदी मिलते हुए से लगते हैं किन्हीं दो भाइयों के समान. प्रभंजय ने भी अनूप जलोटा की तरह अपनी गायकी के लिए भजन और गज़ल को चुना है और उनके गायन के बाद यह साबित भी हुआ है कि अनूप जलोटा की तरह प्रभंजय की आवाज़ भी ग़ज़ल गायन की तुलना में भजन गायन के लिए ज्यादा मुफ़ीद है. जैसा कि पं. राजन-साजन मिश्र ने कहा है कि ‘प्रभंजय को भजन ही गाना चाहिए, उसे भगवान ने भजन गाने के लिए भेजा है.’ या प्रसिद्ध भजन गायक हरिओम शरण कहते हैं कि ‘भजन गायन प्रभंजय को विरासत में मिला है तभी वह अंतर्मन से भजन गाता है.’ फिर प्रभंजय के संगीत की व्यावसायिक शिक्षा के गुरु भजन सम्राट अनूप ज़लोटा तो यह मानते ही हैं कि ‘प्रभंजय जब गाते हैं तो मुझे भ्रम होता है कि मैं गा रहा हूँ या प्रभंजय!’
एक बार रेडियो कन्सर्ट में एफ.एम.रेडियो में अनूप जी ने प्रभंजय का एक छोटा-सा साक्षात्कार भी लिया था. ये सब बताते हुए प्रभंजय एक मज़ेदार वाकिया सुनाते हैं कि ‘एक बार वे जबलपुर में जहां गा रहे थे वहां से अनूप ज़लोटा जी की माँ निकलीं. वे अपनी बेटी के घर आई हुईं थीं और उन्होने सड़क चलते बाहर से जब प्रभंजय की आवाज सुनीं तब उन्हें लगा कि उनका बेटा अनूप गा रहा है और वे मंच की ओर झांकने चली आई थीं.’ इस तरह भजन और गज़ल के बीच तिरती है एक आवाज़ प्रभंजय चतुर्वेदी की भी.
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विनोद साव ( छत्तीसगढ़ आसपास वर्ष 2015 जुलाई अंक में प्रकाशित – संदर्भ: अभी प्राप्त ‘भिलाई वाणी’ सम्मान)