देहली उर्दू एकेडमी से शाया होने वाली मैगजीन
“ऐवाने उर्दू” ( सितंबर 2022 ) में ख़ाकसार की ग़ज़ल
शाया हुई है । लिपयांतर हिंदी में पेश कर रहा हूं ।
*********************
^^^^ गजल ^^^^
अगर रंगे खिजां की हर तरफ़ जलवागरी होती
ना कोई फूल खिलता और ना शाखे गुल हरी होती
तुम्हारे हुस्न के जलवों से है रानाईये गुलशन
वगरना गुंचा ओ गुल में कब ऐसी दिलबरी होती
अगर जोहरा जमालों में ना होता ज़ौके आराइश
तो क्या जुल्फों में खम होता दुपट्टों में ज़री होती
अगर कोई परी चेहरा हमारा हमसफर होता
तो अपनी रहगुजार भी गुंचा ओ गुल से भारी होती
उसे जब देखता हूं मैं तो ये महसूस होता है
वो आदम जाद ना होती तो जन्नत की परी होती
ना चुभती बेरुखी उनकी अगर मेरी तबीयत पर
ना दामन भीगता मेरा ना आंखों में तरी होती
अगर मेरी तरफ से आप यूं मश्कूक ना होते
तो मेरी आपसे जो गुफ्तगू होती खरी होती
अगर हम तुमको वर माला ना पहनाते तो बतलाओ
तुम्हारी मांग क्या सिंदूर से यूंही भरी होती
ये दुनिया नेको – बद के रंग से मामूर है वरना
रफू के ज़िक्र में शामिल कहां जमादरी होती
गनीमत है अभी कुछ साहिबे -किरदार हैं बाकी
फरेबो – मक्र की वरना यहां बाज़ीगरी होती
ना उड़ता रेशमी आंचल जो ज़हरीली फिज़ाओं में
ना कजरी गूंजती “कौसर” ना कोई बांसुरी होती
अब्दुस्सलाम”कौसर”
नोट = मांग क्या सिंदूर – – – ये शेर नया है ,, को इस
ग़ज़ल को पोस्ट करते – करते हुआ है ।