मेरी नवीनतम कविता : यौवन मेरा लापता हो गया
कहीं यौवन तो मेरा लापता हो गया
कोई चुरा ले गया कि खुद खो गया
सब कहते हैं बड़ा ही करारा था वो
सुलगता सा कोई एक शरारा था वो
मझधार में मुझे जैसे किनारा था वो
हीरे मोती से भरा एक पिटारा था वो
चलते चलते ज्यों राही कोई सो गया
यौवन मेरा—-
ना किसी पिंजरे का हारा सिंह था वो
मेरे लिए तो जैसे कि दारा सिंह था वो
अब रोगों के लिए काया सस्ती हुई है
दस दस बीमारियों की ये बस्ती हुई है
मुझे कोई बता दो वो किधर को गया
यौवन मेरा लापता—
मगर अब हौसले मेरे समझाने लगे हैं
कई बड़े बड़े लोग घर पर आने लगे हैं
जोश बदल गया है आजकल होश में
इजाफा हुआ कुछ समझ के कोष में
उसको तो जाना ही था गया सो गया
यौवन मेरा लापता—-
जो ताव था विवेक में बदल गया है
जीने की कला को दे शक्ल गया है
माना घटी होगी इस तन की शक्ति
बदले में पायी मैने अनमोल भक्ति
उसका ना गम कर गया सो गया
यौवन मेरा लापता—
इस बदन में मुझे कमजोरी मिली है
अनुभवों की मगर तिजोरी मिली है
जो भी आया उसका जाना बना है
ये जग एक मुसाफिर खाना बना है
मंजिल वो अपनी पा गया तो गया
आज यौवन मेरा लापता हो गया
कोई ले गया कि वो खुद खो गया। ।
डॉ जेके डागर