हिंदी कविता- एक दीप जलाना चाहूं…
मन की बगिया सजाना चाहूं ।
मैं एक दीप…..जलाना चाहूं ।।
एक दीप…. जीवन के गगन में,
एक दीप अंतर्मन के आंगन में ।
एक दीप अनास्था के आंगन में,
एक दीप पिपासा के प्रांगण में ।।
जलकर…,
दीप का अस्तित्व बनना चाहूं,
मैं एक….. दीप जलाना चाहूं ।
मन की बगिया सजाना चाहूं ।।
एक दीप…. उलझन के आले में,
एक दीप भरम के चौथे माले में ।
एक दीप तन उजले मन काले में,
एक दीप.. शंकर के शिवालय में ।।
एक सार्थक…,
जीवन अपनाना चाहूं,
मैं एक…. दीप जलाना चाहूं ।
मन की बगिया सजाना चाहूं ।।
एक दीप… अंह की ऊंची अटारी पर,
एक दीप बिखरे सपनों के क्यारी पर ।
एक दीप सफल जीवन की तैयारी पर,
एक दीप आसमां में उड़ते सवारी पर ।।
दीया बाती…,
जीवनसाथी बनाना चाहूं,
मैं एक दीप जला ना चाहूं ।
मन की बगिया सजाना चाहता हूं ।।
एक दीप कसक के कोट कंगूरे,
एक दीप ललक की लहरों तीरे ।
एक दीप झिरमिरे झूठ झरोखें,
एक दीप खाम ख्याली में खोखे ।।
धरती पर…,
अमृत…… बरसाना चाहूं,
मैं एक दीप जलाना चाहूं ।
मन की बगिया सजाना चाहता हूं ।।
एक दीप दुविधा की दो राहों पर,
एक दीप चोर मन के चौराहों पर ।
एक दीप त्रिकाल के त्रि राहों पर,
एक मंजिल की ओर बढ़ता राहों पर ।।
नफरत के…,
अंधकार को… मिटाना चाहूं,
मैं एक दीप…. जलाना चाहूं ।
मन की बगिया सजाना चाहूं ।।
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स्वरचित एवं मौलिक
मनोज शाह ‘मानस’
सुदर्शन पार्क,
नई दिल्ली-110015
मो.नं.7982510985
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