छत्तीसगढ़ म सांस्कृतिक जागरण के पुरोधा दाऊ रामचंद्र देशमुख
25 अक्टूबर जयंती म सुरता-
सन् 1971 के 7 नवंबर के जुड़हा रतिहा के सुरता छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक इतिहास म सबर दिन अंजोरी बगरावत जगजग ले अमर रइही. काबर ते इही दिन दुरूग तीर के गाँव बघेरा म लोक-संस्कृति के जागरण काल के जयघोष “चंदैनी गोंदा” के प्रथम प्रस्तुति के रूप म होए रिहिसे.
दाऊ रामचंद्र देशमुख जी के संयोजन म होए ए ऐतिहासिक प्रस्तुति ल तो मोला देखे के सौभाग्य नइ मिल पाए रिहिसे, फेर संगीतकार खुमान साव जी के संचालन म प्रदर्शित होए ए ‘चंदैनी गोंदा’ ल मैं जरूर देखे रेहेंव. भिलाई पावर हाउस म होए वो कार्यक्रम के जानकारी मोला खुद दाऊ जी ही दे रिहिन हें. तब वो मंच म दाऊ जी के सम्मान होए रिहिसे. तब मैं छत्तीसगढ़ी सिनेमा के नायक अउ बरछाबारी के संपादक रहे चंद्रशेखर चकोर संग उहाँ पहुंचे रेहेंव.
दुरुग जिला (अब बालोद) के गाँव पिनकापार म महतारी मालती देवी अउ सियान गोविन्द प्रसाद जी के घर 25 अक्टूबर 1916 के जनमे दाऊ रामचंद्र देशमुख जी संग मोर चिन्हारी सन् 1987 के नवंबर-दिसंबर महीना म तब होए रिहिसे, जब छत्तीसगढ़ी भाखा के पहला मासिक पत्रिका “मयारु माटी” के विमोचन करे खातिर उंकर जगा कार्यक्रम के पहुना बने खातिर अनुमति ले बर वरिष्ठ पत्रकार साहित्यकार टिकेन्द्रनाथ टिकरिहा जी संग उंकर घर पहुंचे रेहेन. बाद म तो हमेशा मेल-भेंट होवत राहय. कतकों बखत मैं उंकर घर बघेरा म रतिहा घलो रहि जावत रेहेंव. तब दाऊ जी संग चंदैनी गोंदा के संगे-संग छत्तीसगढ़, छत्तीसगढ़ी अउ छत्तीसगढ़िया मन ले जुड़े विविध विषय म चर्चा होवय. तब जनावय, के दाऊ जी के भीतर छत्तीसगढ़ ल लेके कतका पीरा भरे हे, अउ ए सबके समाधान खातिर उंकर मन म का-का उपाय या रद्दा हे.
ए बात सही आय के दाऊ जी ल चंदैनी गोंदा के माध्यम ले ही राष्ट्रीय अउ अंतर्राष्ट्रीय स्तर म जादा प्रतिष्ठा अउ चिन्हारी मिलिस, फेर लोककला के संरक्षण अउ संवर्धन खातिर उन सन् 1950 ले ही ‘छत्तीसगढ़ देहाती कला विकास मंच’ के गठन के साथ ही लगगे रिहिन हें. एकर माध्यम ले उन तब के नाचा शैली म परिमार्जन करिन अउ वोला एक सम्मानजनक रूप देइन. वोमन कला के मनोरंजनात्मक रूप ल एक विचारधारा म जोड़त वैचारिक क्रांति के रद्दा तक लेगे के भगीरथ उदिम करिन. आज हम छत्तीसगढ़ी गीत संगीत म, इहाँ के सांस्कृतिक मंच मन म, नवा पीढ़ी के रचनाकार मन म छत्तीसगढ़ी अस्मिता ले जुड़े विषय म बेधड़क बोलत अउ लिखत देखथन, सब उंकरे बोए बिजहा के परसादे देखथन-सुनथन.
आज तो छत्तीसगढ़ राज बने के कोरी भर बछर ले आगर होगे हे. इहाँ के भाखा संस्कृति अउ कला खातिर इहाँ के सरकार ह कतकों उदिम करत रहिथे, तभो वो सब उदिम ह अधूरा जनाथे. तब वो बेरा के बात गुनव, जब लोगन छत्तीसगढ़ी बोले-बताए अउ अउ अपन चिन्हारी बताए म लजाए असन करय. वो बखत अइसन बुता ल धर के आगू अवई ह कतेक जब्बर छाती वाले के बुता रिहिस होही? फेर दाऊ जी अपन धुन के पक्का रिहिन. उन पूरा छत्तीसगढ़ ले कलाकार मनला छांट-निमार के अपन संग जोड़त गिन. इनमा मदन निषाद, लालूराम, ठाकुरराम, भुलवा दास, बाबूदास, मालाबाई, फिदा बाई आदि प्रमुख रिहिन. दाऊ जी ए बखत कला के संवर्धन के संगे-संग जनसेवा अउ समाज सुधार के कारज म ही लगावंय.
दाऊ जी एक बखत मोला बताए रिहिन हें- छत्तीसगढ़ राज्य के स्वपनदृष्टा जेन रिश्ता म उंकर ससुर जी घलो रिहिन डाॅ. खूबचंद बघेल जी के चिट्ठी जेन वोमन 22 फरवरी 1969 के लिखे रिहिन हें, वोकर ले प्रभावित होके वोमन ‘चंदैनी गोंदा’ के सिरजन म आगू बढ़िन.’ दाऊ जी बताए रिहिन के, डाॅ. खूबचंद बघेल जी उनला छत्तीसगढ़ के नवनिर्माण खातिर आव्हान करत लिखे रहिन हें, के समाज के जनजागरण म आपके स्थायी भूमिका बनत हे. मैं चाहथौं आप समाज म वो भूमिका म आवौ, जेन अभी मैं करत हौं. हमला आपके कलात्मक प्रतिभा के घलो जरूरत हे. अब आप वइसन नइ रेहेव, जइसन पहिली रेहेव. आप सिरिफ चिंतन, लेखन अउ निर्देशन के दृष्टि ले सोचव. महू योगदान देहूं. हमला छत्तीसगढ़ के हर हालत म नवनिर्माण करना हे.’
डॉ. खूबचंद बघेल जी के वो चिट्ठी ह ‘चंदैनी गोंदा’ के सिरजन के इतिहास रचे म जबर बुता करिस. चंदैनी गोंदा के भव्यता अउ लोकप्रियता के डंका बजे लगिस. बताथें- एक बेर पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी जी के कार्यक्रम रिहिसे अउ उहिच बेरा म थोरके दुरिहा म ‘चंदैनी गोंदा’ के कार्यक्रम घलो रिहिसे. बताथें, इंदिरा गाँधी जी के कार्यक्रम म लोगन के उपस्थिति नहीं के बरोबर रिहिसे. एकर कारण जाने खातिर जब इंदिरा जी पूछिन, त उनला बताए गिस के बाजू के गाँव म ‘चंदैनी गोंदा’ के कार्यक्रम चलत हे, जिहां लोगन उमड़े परे हे, वोकरे सेती इहाँ उपस्थिति नहीं के बरोबर हे.
‘चंदैनी गोंदा’ के प्रस्तुति छत्तीसगढ़ म तो होबेच करय, एकर छोड़े उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, दिल्ली, मध्यप्रदेश आदि राज्य मन म घलो सफलता पूर्वक होइस. अखिल भारतीय लोककला महोत्सव यूनेस्को द्वारा आयोजित भोपाल के सम्मेलन म एला भारी सराहना मिलिस.
दाऊ जी अपन जिनगी के आखरी बेरा तक छत्तीसगढ़ी कला संसार खातिर समर्पित रिहिन. मोर सौभाग्य आय, छत्तीसगढ़ी भाखा के पहला मासिक पत्रिका ‘मयारु माटी’ के विमोचन 9 दिसंबर 1987 के मैं उंकरेच पबरित हाथ ले करवाए रेहेंव. तब छत्तीसगढ़ी मंच के एक अउ साधक दाऊ महासिंह चंद्राकर जी वो कार्यक्रम के अध्यक्षता करे रिहिन हें.
कला, साहित्य अउ संस्कृति के त्रिवेणी संगम दाऊ रामचंद्र जी देशमुख 13 जनवरी 1998 के रतिहा ए नश्वर दुनिया ले बिदागरी लेइन. फेर जब तक छत्तीसगढ़ म गौरवशाली कला-संस्कृति के गोठ होवत रइही, तब तक दाऊ जी ल सम्मान के साथ सुरता करे जाही.
अभी दाऊ जी के व्यक्तित्व कृतित्व ऊपर डाॅ. सुरेश देशमुख जी के संपादन म एक अच्छा ग्रंथ ‘चंदैनी गोंदा : छत्तीसगढ़ की एक सांस्कृतिक यात्रा’ नाॅंव ले आए हे. जे लोगन या शोधार्थी मन छत्तीसगढ़ी कला ऊपर कारज करत हें, वोकर मन बर ए ह बड़ उपयोगी साबित हो सकत हे.
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811