आज हम चर्चा करेंगे कथक नृत्य के बारे में
भारतीय संस्कृति में अनेकों लोक नृत्य शैली है। लोक नृत्य शैली अनगिनत है हमारे भारत में। मगर जब बात आती है शास्त्रीय नृत्य शैली की तब केवल ९ प्रकार की नृत्य शैली की ही नाम आती है। जैसे कथक ( उत्तर प्रदेश), मणिपुरी ( मणिपुर), सत्रीय ( असम), गौड़िय ( पश्चिम बंगाल) , ओड़िसी ( ओड़िशा), कुचीपुड़ी (अंद्रप्रदेश), भरतनाट्यम ( तमिलनाडू), कथाकली ( केरला), मोहिनियट्टम ( केरला)।
वर्तमान में प्रचलित इन ९ प्रकार शास्त्रीय नृत्य शैली में से सबसे प्राचीन है कथक। कथक के बारे में हिंदी भाषा में एक कहावत है ” कथा कहे सो कथक कहावे”। जो कथा अर्थात कहानियों के उपर नृत्य करता है वो ही कथक होता है। दूसरे तरीके से सोचा जाए तो ये अर्थ निकलता है” जो नृत्य की कथा अर्थात बोलों के उपर आधारित नृत्य करता है वही कथक होता है”। भारत में कथक ही एक मात्र नृत्य शैली है जो ईश्वर की आदेश में निर्माण की गई थी। गुरु पंडित ईश्वरी प्रसाद जी को भगवान श्री कृष्ण का स्वप्नादेश मिला नटवरी नृत्य को पुनः उद्धार करने की। उनका परिवार प्रयाग राज में स्थित किसी मन्दिर में कथा वाचन का काम करता था। आदेश मिलने के बाद कड़ी मेहनत करके भगवान कृष्ण की नटवरी नृत्य को पुनः उद्धार किया और अपने परिवार वालों को इसकी शिक्षा देने लगे। इसलिए इस नृत्य का नाम नटवरी कथक भी हुआ। मूल रूप से भक्ती भाव की ही नृत्य थी कथक। बाद में जब मुगल आए तो सारे मन्दिर नष्ट कर दिए। मन्दिर से देवदास और देवदासी ले जा कर दरबारी कलाकार बनाए। मुगलों को कला से अधीक कलाकरों में आग्रह थी। फिर जब स्थिति थोड़ी सी शांत हुई तो कुछ अच्छे सोच विचार वाले मुगल बादशाह जैसी की वाजेद अली शाह अपने सभा में कलाकरों को स्थान दिया। तब कथक नृत्य में इस्लामिक प्रभाव आ चुका था। भक्ति भाव को छोड़ केवल मनोरंजन के लिए नृत्य की जाती थी। ठाकुर प्रसाद जी को भगवान कृष्ण का आदेश फिर से मिला। तब दोबारा कथक में भक्ति भाव वाली रचनाएं, गत भाव इत्यादि जुड़ने लगा। इसके चलते कथक भिन्न भिन्न घरानाओ में विभक्त हुए। उनमें से लखनऊ घराना में इस्लामिक प्रभाव अधिक पड़ा। जयपुर घराना में राजपूती प्रभाव आया। बनारस घराने में भक्ति भाव बरकारक रहा, रायगढ़ घराना लखनऊ के कलाकार तथा राजा चक्रधर सिंह के द्वारा स्थापित किया गया। मगर हर घराने में कुछ न कुछ बदलाव आया। चाहे वो हाव भाव की हो या सजने धजने की हो। धीरे धीरे युज में परिवर्तन आया, राजनीति बदली और हमारा खोया हुआ हिंदू संस्कृति वापस लौटा। वर्तमान में कथक की जो रूप देखना को मिलती है वो शुद्ध भारतीय है। इस नृत्य को आगे बढ़ाने के लिए बहुत सारी गुरुओं ने परिश्रम किया और बहुत सारे कलाकारों ने भी मेहनत किया, जिसका परिणाम हम लोग आज देख रहें हैं।।
कौशिक माइति ( कथक नृत्य)