धुंधले साये
रोशनी आती रही उन जर्जर झरोखों से
धुंधले होते गये क्यूँ अपनों के साये
कानों में गूँजती रहीं यादों की चीखें
बहते हुए आँसू शोर भी ना मचा पाये
हर तरफ पसरा है बेदर्द सन्नाटा
आहट सी होती है जब साँस आये-जाए
हर हंसी बिलखती रही उसूलों में बंधी
किस तरह खुशी अपना दामन बचाए
शान से रौंदे जा रहे हैं, गुलिस्ताँ वो देखो
गुलों का लहू हर तरफ चमचमाए
उमड़ने दो दिलों में ख्वाहिशों के सैलाब
कौन है यहाँ जो जज्बातों को समझ पाए
तूफां ने उठाकर ला दिया किनारे पर
मौत से लड़कर भी हम जिन्दगी ना बचा पाए.
डाॅ. सुषमा गुप्ता 🌷