November 22, 2024

रोशनी आती रही उन जर्जर झरोखों से
धुंधले होते गये क्यूँ अपनों के साये
कानों में गूँजती रहीं यादों की चीखें
बहते हुए आँसू शोर भी ना मचा पाये

हर तरफ पसरा है बेदर्द सन्नाटा
आहट सी होती है जब साँस आये-जाए
हर हंसी बिलखती रही उसूलों में बंधी
किस तरह खुशी अपना दामन बचाए

शान से रौंदे जा रहे हैं, गुलिस्ताँ वो देखो
गुलों का लहू हर तरफ चमचमाए
उमड़ने दो दिलों में ख्वाहिशों के सैलाब
कौन है यहाँ जो जज्बातों को समझ पाए

तूफां ने उठाकर ला दिया किनारे पर
मौत से लड़कर भी हम जिन्दगी ना बचा पाए.

डाॅ. सुषमा गुप्ता 🌷

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