गीत-मुग्ध हुए द्वय रहे देखते
चलते-चलते मिले राह में, मिलकर दोनो हर्षाए।
मुग्ध हुए द्वय रहे देखते, बोल न अधरों से पाए।।
अनजाने वे पथ के राही, गाँव अजाने पहुँचे हैं।
एक प्यार की राहें लेकर, गीत सुनाने पहँचे हैं।।
दोनो अपना गाँव त्याग कर, गाँव विराने आए।
मुग्ध हुए द्वय रहे देखते, बोल न अधरों से पाए।।
धूप चिलचिली शीश चढ़ी है, छाँव रुकी अमराई।
अनचाही उद्दाम ग्रीष्म रुत पर्वत सम ऊँचाई।
नयन चार जब हुए बावरे, गीत मिलन के गाए।
मुग्ध हुए द्वय रहे देखते, बोल न अधरों से पाए।।
बाधाओं की बांह थामकर पग-पग आगे बढ़ते हैं।
साहस देख असीमित कांटे पथ निर्मित करते हैं।
अभिसारी जब हृदय मिले द्वै नेत्र सजल हो आए।
मुग्ध हुए द्वय रहे देखते, बोल न अधरों से पाए ।।
निशा अंत जब उषा मिली तब जीवन में मुदिता आई।
प्यासे सरिता जल में जैसे पावस की सुचिता आई।
अधर बंद के बंद रहे द्वय, नयन सघन घन छाए।
मुग्ध हुए द्वय रहे देखते, बोल न अधरों से पाए।।
सुरभि कमल दल खिले ताल में, भ्रमरवृंद गुन गाते।
प्रभा समाई अंग-अंग जब युगल हृदय सुख पाते।
मधुर मिलन का हर्ष है पूजा, क्लेश सकल बिसराए।
मुग्ध हुए द्वय रहे देखते, बोल न अधरों से पाए।।
कु.पूजा दुबे